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आ॒रो॒का इ॑व॒ घेदह॑ ति॒ग्मा अ॑ग्ने॒ तव॒ त्विष॑: । द॒द्भिर्वना॑नि बप्सति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ārokā iva ghed aha tigmā agne tava tviṣaḥ | dadbhir vanāni bapsati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒रो॒काःऽइ॑व । घ॒ । इत् । अह॑ । ति॒ग्माः । अ॒ग्ने॒ । तव॑ । त्विषः॑ । द॒त्ऽभिः । वना॑नि । ब॒प्स॒ति॒ ॥ ८.४३.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:29» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (नासत्या) हे असत्यरहित राज्यप्रबन्धकर्त्ताओं ! (यथा) जैसे (मेधिराः) विद्वान् मेधाविगण (वाम्) आपको (अहुवन्त) स्वकार्य्य के लिये बुलाते हैं, (एव) वैसे मैं भी (वाम्) आपको (ऊतये) साहाय्य के लिये (अह्वे) बुलाता हूँ ॥६॥
भावार्थभाषाः - राजा का सत्कार सब कोई करे ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'वासना-वन-विलय'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (तव) = आपकी (तिग्मा) = अतितीक्ष्ण (त्विषः) = ज्ञानदीप्तियाँ (घा इत् अह) = निश्चय से और अवश्य निश्चय से (वनानि) = हृदयक्षेत्र में उग आनेवाली वासनारूप झाड़ियों को इस प्रकार (बप्सति) = खा जाती हैं। (इव) = जैसे अग्नि की (आरोकाः) = दीप्त-ज्वालाएँ (दद्भिः) = लपट-रूप दाँतों से [वनानि बप्सति] वनों को निगल जाती हैं। [२] अग्नि की ज्वालाओं में वन भस्म हो जाते हैं। इसी प्रकार प्रभु की ज्ञानदीप्तियों में वासनाओं का विध्वंस हो जाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ:- प्रभु की उपासना के होने पर हमारी सब वासनाएँ प्रभु की ज्ञान ज्वालाओं में दग्ध हो जाती हैं।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे नासत्यौ=अश्विनौ ! यथा। मेधिराः=मेधाविनः। वां=युवाम् अहुवन्त=आह्वयन्ति। एव=तथैवाहमपि। ऊतये=साहाय्यार्थं। वाम्=युवाम्। अह्वे=आह्वयामि सिद्धमन्यत् ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - 3. Like the light of the sun, surely, the brilliant showers of your grace and splendour, with your gifts, illuminate and intensify the beauties of life.