यद॑ग्ने दिवि॒जा अस्य॑प्सु॒जा वा॑ सहस्कृत । तं त्वा॑ गी॒र्भिर्ह॑वामहे ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
yad agne divijā asy apsujā vā sahaskṛta | taṁ tvā gīrbhir havāmahe ||
पद पाठ
यत् । अ॒ग्ने॒ । दि॒वि॒ऽजाः । असि॑ । अ॒प्सु॒ऽजाः । वा॒ । स॒हः॒ऽकृ॒त॒ । तम् । त्वा॒ । गीः॒ऽभिः । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ ८.४३.२८
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:28
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:34» मन्त्र:3
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:28
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निम्) उस परमात्मदेव को हम उपासक (वाजयामसि) पूजें स्तुति करें, जो (विश्वायुवेपसम्) सबमें बल देनेवाला है (मर्य्यम्+न) मित्र मनुष्य के समान (हितम्) हितकारी है, पुनः (वाजिनम्) स्वयं महाबलिष्ठ और सर्वज्ञानमय है, पुनः (सप्तिम्+न) मानो एक स्थान से दूसरे स्थान में गमन करनेवाला है। उस देव की उपासना करो ॥२५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! उसकी विभूति देखो, सूर्य्यादिकों को भी वह बलप्रद है। वही सबका हितकारी है, उसी की उपासना करो ॥२५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
दिविजाः, अप्सुजाः
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (यद्) = जो आप (दिविजाः असि) = ज्ञानज्योति के होने पर प्रादुर्भूत होनेवाले हैं। (वा) = अथवा (अप्सुजाः) = रेतः कणरूप जलों में प्रादुर्भूत होनेवाले हैं। प्रभु का प्रकाश उसी को दिखता है, जो ज्ञानज्योति को अपने अन्दर दीप्त करता है, तथा रेतःकणों का रक्षण करता हुआ ज्ञानाग्नि को समिद्ध करता है। [२] हे (सहस्कृत) = बल का हमारे में सम्पादन करनेवाले प्रभो ! (तं त्वा) = उन आपको हम (गीर्भिः) = स्तुतिवाणियों से हवामहे पुकारते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु का दर्शन ज्ञानी व सोमरक्षक संयमी पुरुष को होता है।
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - विश्वायुवेपसम्। विश्वेषु सर्वेषु आयुः=गमनशीलं वेपो बलं यस्य तम्। सर्वबलप्रदमित्यर्थः। मर्य्यं न=मनुष्यमिव। हितं=हितकरम्। वाजिनम्=सर्वज्ञानमयम्। सप्तिन्न= सर्पणशीलमिव स्थितम्। अग्निम्। वाजयामसि=स्तुमः ॥२५॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Agni, whether you manifest in heaven, or in the waters or shine in acts of universal divine power, we adore, worship and invoke you in the holiest words.
