वि॒शां राजा॑न॒मद्भु॑त॒मध्य॑क्षं॒ धर्म॑णामि॒मम् । अ॒ग्निमी॑ळे॒ स उ॑ श्रवत् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
viśāṁ rājānam adbhutam adhyakṣaṁ dharmaṇām imam | agnim īḻe sa u śravat ||
पद पाठ
वि॒शाम् । राजा॑नम् । अद्भु॑तम् । अधि॑ऽअक्षम् । धर्म॑णाम् । इ॒मम् । अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । सः । ऊँ॒ इति॑ । श्र॒व॒त् ॥ ८.४३.२४
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:24
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:33» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:24
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे महेश ! (हि) जिस कारण तू (पुरुत्रा) सर्व प्रदेश में (सदृङ्+असि) समानरूप से विद्यमान है और (विश्वाः) समस्त (विशः+अनु) प्रजाओं का (प्रभु) स्वामी है अतः (त्वा) तुझको ही (समत्सु) संग्रामों और शुभकर्मों में (हवामहे) पूजते ध्याते और नाना स्तोत्रों से स्तुति करते हैं ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जिस कारण परमात्मा में किञ्चिन्मात्र भी पक्षपात का लेश नहीं है और सबका स्वामी भी वही है, अतः उसी को सब पूजते चले आते हैं। इस समय भी तुम उसी की कीर्ति गाओ ॥२१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
धर्मणाम् अध्यक्षम्
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इमम् अग्निम्) = इस अग्रणी प्रभु को (ईडे) = मैं स्तुत करता हूँ । (सः उ) = वे ही (श्रवत्) = मेरी प्रार्थना को सुनते हैं। [२] उस प्रभु का मैं ईडन करता हूँ जो (विशां राजानम्) = सब प्रजाओं के राजा [शासक] हैं। (अद्भुतम्) = अनुपम हैं। (धर्मणाम्) = सब धर्म कार्यों के अथवा धारणात्मक कर्मों के (अध्यक्षम्) = अध्यक्ष हैं। सब धर्मकार्य प्रभु की अध्यक्षता में ही सम्पन्न होते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु का उपासन करें। प्रभु ही सबके शासक, अनुपम व सब धर्म-कर्मों के अध्यक्ष हैं।
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ईश्वर ! हि=यतः। पुरुत्रा=बहुषु प्रदेशेषु। सर्वत्रैवेत्यर्थः। सदृङ्=समानरूपः। असि=भवसि। तथा विश्वाः=सर्वाः। विशः=प्रजाः। अनु। सर्वासां प्रजानामित्यर्थः। प्रभुः=प्रभुः स्वामी वर्तसे। अत्र सुलोपश्छान्दसः। अतः। समत्सु=युद्धेषु=सर्वेषु कर्मसु च। त्वा=त्वामेव। हवामहे=ह्वयामः=स्तुमः ॥२१॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - I adore and worship the ruler of the people, wonderful power, lord protector and controller of Dharma and laws of the earth. May the lord listen to our prayer.
