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तं त्वामज्मे॑षु वा॒जिनं॑ तन्वा॒ना अ॑ग्ने अध्व॒रम् । वह्निं॒ होता॑रमीळते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ tvām ajmeṣu vājinaṁ tanvānā agne adhvaram | vahniṁ hotāram īḻate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । त्वाम् । अज्मे॑षु । वा॒जिन॑म् । त॒न्वा॒नाः । अ॒ग्ने॒ । अ॒ध्व॒रम् । वह्नि॑म् । होता॑रम् । ई॒ळ॒ते॒ ॥ ८.४३.२०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:20 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:32» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:20


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (अग्ने) हे सर्वगतिप्रद परमात्मन् ! (मम+स्तुतः) मेरी स्तुतियाँ (त्वा) तुझको (आशत) प्राप्त हों। यहाँ दृष्टान्त देते हैं−(गावः+इव) जैसे गाएँ (वाश्राय) नाद करते हुए और (प्रतिहर्यते) दुग्धाभिलाषी वत्स के लिये (गोष्ठम्+आशत) गोष्ठ में प्रवेश करती हैं ॥१७॥
भावार्थभाषाः - जैसे वत्स के लिये गौ दौड़कर गोष्ठ में जाती है, तद्वत् मेरे स्तोत्र भी शीघ्रता से आपके निकट प्राप्त हों। यह इसका आशय है ॥१७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'वाजी वह्नि' अग्नि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (तं वह्निं) = उन सब कार्यों के वहन करनेवाले (होतारं) = सब कुछ देनेवाले (वाजिनं) = शक्तिशाली (त्वाम्) = आपको (अज्मेषु) = गृहों में (अध्वरं तन्वानाः) = यज्ञों का विस्तार करनेवाले लोग (ईडते) = उपासित करते हैं । [२] प्रभु की उपासना यज्ञों से होती है । उपासित प्रभु ही हमारे यज्ञ आदि कार्यों का वहन करते हैं, वे ही हमारे लिए सब आवश्यक साधनों को प्राप्त कराते हैं तथा शक्ति सम्पन्न करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ:- हम घरों में यज्ञों का विस्तार करें। यही प्रभु की उपासना का प्रकार है। प्रभु ही हमें सब साधनों व शक्ति को प्राप्त कराके इन यज्ञों को पूर्ण करते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - उत=अपि च। हे अग्ने ! मम। स्तुतः=स्तुतयः। त्वा=त्वां। आशत=प्राप्नुवन्तु। अत्र दृष्टान्तः। गाव इव=यथा गावः। वाश्राय=वाशनशीलाय। पुनः प्रतिहर्य्यते=पयः कामयमानाय वत्साय। गोष्ठम्। आशत=प्रविशन्ति तद्वत् ॥१७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, holy men of action, extending various and versatile forms of yajna in all their projects of social development without waste, violence and bloodshed, invoke and pray to you, lord of light and giver of universal wealth, source of knowledge, progress and prosperity, guide and burden bearer of the world, and high priest of the cosmic yajna of existence.