वांछित मन्त्र चुनें

अ॒ग्निस्त्रीणि॑ त्रि॒धातू॒न्या क्षे॑ति वि॒दथा॑ क॒विः । स त्रीँरे॑काद॒शाँ इ॒ह यक्ष॑च्च पि॒प्रय॑च्च नो॒ विप्रो॑ दू॒तः परि॑ष्कृतो॒ नभ॑न्तामन्य॒के स॑मे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnis trīṇi tridhātūny ā kṣeti vidathā kaviḥ | sa trīm̐r ekādaśām̐ iha yakṣac ca piprayac ca no vipro dūtaḥ pariṣkṛto nabhantām anyake same ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः । त्रीणि॑ । त्रि॒ऽधातू॑नि । आ । क्षे॒ति॒ । वि॒दथा॑ । क॒विः । सः । त्रीन् । ए॒का॒द॒शान् । इ॒ह । यक्ष॑त् । च॒ । पि॒प्रय॑त् । च॒ । नः॒ । विप्रः॑ । दू॒तः । परि॑ऽकृतः । नभ॑न्ताम् । अ॒न्य॒के । स॒मे॒ ॥ ८.३९.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:39» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:9


0 बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

परमात्मा सर्ववित् है, यह इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) सर्वाधार वह परमात्मा (देवानाम्+जाता+वेद) सूर्य्यादि देवों के जन्म जानता है (अग्निः) वह देव (मर्तानाम्+अपीच्यम्) मनुष्यों की गुह्य बातों को भी जानता है। (सः+अग्निः+द्रविणोदाः) वह अग्नि सब प्रकार का धनदाता है। (अग्निः) वह देव (द्वारा) सर्व पदार्थों का द्वार (व्यूर्णुते) प्रकाशित करता है और (स्वाहुतः) वह सुपूजित होकर (नवीयसा) नूतन विज्ञान के साथ उपासक के ऊपर कृपा करता है। उसी की कृपा से (अन्यके+समे) अन्य सब ही शत्रु (नभन्ताम्) विनष्ट हो जाएँ ॥६॥
भावार्थभाषाः - सर्व देवों का वह जनक है, सबकी दशा वह जानता है, सबका शासक है, इत्यादि दिखलाने से भाव यह है कि वही एक पूज्य है, अन्य नहीं ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विप्रः दूतः परिष्कृतः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (त्रिधातूनि) = शरीर, मन व बुद्धि-तीनों को धारण करनेवाले (त्रीणि विदथा) = तीनों 'ऋग्-यजु-साम' रूप ज्ञान की वाणियों में (आक्षेति) = सदा से निवास करते हैं । (कविः) = वे प्रभु ही इस वेदरूप काव्य के कवि हैं 'देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति । ' [२] (सः) = वे प्रभु (त्रीन् एकादशान्) = तीन गुणा ग्यारह अर्थात् तैंतीस देवों को (इह) = इस जीवनं में (यक्षत्) = संगत करते हैं, (च) = और (नः पिप्रयत्) = हमें प्रीणित करते हैं अथवा हमारी सब कामनाओं का पूरण करते हैं। वे प्रभु (विप्रः) = हमारा विशेषरूप से पूरण करनेवाले हैं, (दूतः) = ज्ञान का सन्देश देनेवाले हैं तथा (परिष्कृतः) = [परिष्कृतम् अस्य अस्ति] पूर्ण परिष्कार व शुद्धि को करनेवाले हैं। प्रभु के अनुग्रह से (समे) = सब (अन्यके) = शत्रु (नभन्ताम्) = नष्ट हो जाएँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ:- प्रभु सर्वज्ञ हैं, वे सब देवों को हमारे साथ संगत करते हैं। ज्ञान देकर हमारा पूरण व परिष्कार करते हैं।
0 बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

परमात्मा सर्वविदस्तीति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - अग्निरीश्वरः। देवानाम्=सूर्य्यादीनाम्। जाता=जातानि= जन्मानि। वेद=जानाति। पुनः। मर्तानाम्=मर्त्यानाम्। अपीच्यम्=गुह्यम्। वेद। सोऽग्निः। द्रविणोदाः=धनदाः। सोऽग्निः। द्वारा=द्वाराणि। व्यूर्णुते=विकाशयति। स्वाहुतः=सुपूजितः सन्। नवीयसा=नवतरेण= विज्ञानेनोपासकमनुगृह्णाति। शेषं पूर्ववत् ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Omnipresent and omniscient Agni pervades three regions of the universe wherein reside three realities worth knowing, i.e., Prakrti (nature), soul, and the Super Soul, Parameshvara. Here in He, the one by himself pure, all knowing, all vibrating like super energy of life, feeds and vitaslises thirty three divinities of nature and sustains us with all that we need and desire. May all negativities and adversities all vanish.