आहं सर॑स्वतीवतोरिन्द्रा॒ग्न्योरवो॑ वृणे । याभ्यां॑ गाय॒त्रमृ॒च्यते॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
āhaṁ sarasvatīvator indrāgnyor avo vṛṇe | yābhyāṁ gāyatram ṛcyate ||
पद पाठ
आ । अ॒हम् । सर॑स्वतीऽवतोः । इ॒न्द्रा॒ग्न्योः । अवः॑ । वृ॒णे॒ । याभ्या॑म् । गा॒य॒त्रम् । ऋ॒च्यते॑ ॥ ८.३८.१०
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:38» मन्त्र:10
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:10
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शिव शंकर शर्मा
पुनः उसी विषय को कहते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (जेन्यावसू) हे जययुक्त धन यद्वा हे शत्रुधननेता (इन्द्राग्नी) राजन् ! तथा दूत आप दोनों (प्रातर्यावभिः) प्रातःकाल गमन करनेवाले (देवेभिः) विद्वानों के साथ (सोमपीतये) सोमरस पीने के लिये (आगतम्) आइये ॥७॥
भावार्थभाषाः - राजा सदा धनसंग्रह करें और प्रजा के कार्य्य में उद्यत रहें ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
सरस्वतीवाले इन्द्राग्नी
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अहं) = मैं (सरस्वतीवतो:) = ज्ञान की अधिष्ठात्री देवतावाले (इन्द्राग्न्योः) = इन्द्र और अग्नि की (अव:) = रक्षा को वृणे सर्वथा वरता हूँ। इन्द्राग्नी का आराधन ही मुझे सरस्वती का प्रशस्त आराधक बनाता है। बल व बुद्धि से युक्त होकर ही मैं सरस्वती का आराधक बन पाता हूँ। [२] मैं उन इन्द्र और अग्नि के का वरण करता हूँ। (याभ्यां) = जिनसे (गायत्रं) = प्राणरक्षक स्तवन (ऋच्यते) = स्तुत होता है । इन्द्र और अग्नि ही वस्तुतः प्राणरक्षक सोम का उच्चरण करते हैं। मैं बल व प्रकाश से युक्त होकर हृदय में उस स्तुति की वृत्ति को अपना पाता हूँ, जो मेरी प्राणरक्षा का साधन बनती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ:-बल व प्रकाश का आराधन मुझे प्रशस्त ज्ञान को प्राप्त करता है। इस आराधन से ही मैं उस स्तवन को करता हूँ, जो मेरा प्राणरक्षक बनता है। बल व प्रकाश के आराधन से यह 'नाभाग' बनता है - One who nips evil in the Bud. रोग व वासनारूप शत्रु को प्रारम्भ में ही समाप्त करनेवाला [मम् हिंसात्मक] । यही समझदारी है कि बुराई को प्रारम्भ ही में समाप्त किया जाए, सो यह 'कण्व' है। यह 'अग्नि' नाम से प्रभु का आराधन करता है-
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शिव शंकर शर्मा
पुनस्तदेवाह।
पदार्थान्वयभाषाः - हे जेन्यावसू=जययुक्तधनौ यद्वा जेतव्यशत्रुधनौ। इन्द्राग्नी युवाम्। प्रातर्यावभिः=प्रातर्गमनकारिभिः। देवेभिः=देवैः सह। सोमपीतये। आगतम् ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - I choose and opt for the protection of Indra and Agni who value and honour the knowledge and enlightenment gifts of eternal and constant revelation of divinity by which the dynamism of human culture and grace and the honour and excellence of humanity is defined and celebrated.
