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देवता: इन्द्र: ऋषि: श्यावाश्वः छन्द: शक्वरी स्वर: धैवतः

अ॒वि॒तासि॑ सुन्व॒तो वृ॒क्तब॑र्हिष॒: पिबा॒ सोमं॒ मदा॑य॒ कं श॑तक्रतो । यं ते॑ भा॒गमधा॑रय॒न्विश्वा॑: सेहा॒नः पृत॑ना उ॒रु ज्रय॒: सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ॑ इन्द्र सत्पते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avitāsi sunvato vṛktabarhiṣaḥ pibā somam madāya kaṁ śatakrato | yaṁ te bhāgam adhārayan viśvāḥ sehānaḥ pṛtanā uru jrayaḥ sam apsujin marutvām̐ indra satpate ||

पद पाठ

अ॒वि॒ता । अ॒सि॒ । सु॒न्व॒तः । वृक्तऽब॑र्हिषः । पिब॑ । सोम॑म् । मदा॑य । कम् । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । यम् । ते॒ । भा॒गम् । अधा॑रयन् । विश्वाः॑ । से॒हा॒नः । पृत॑नाः । उ॒रु । ज्रयः॑ । सम् । अ॒प्सु॒ऽजित् । म॒रुत्वा॑न् । इ॒न्द्र॒ । स॒त्ऽप॒ते॒ ॥ ८.३६.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:36» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विश्वाः पृतना: सेहानः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! आप (सुन्वतः) = सोम का अभिषव करनेवाले, शरीर में सोम का सम्पादन करनेवाले, (वृक्तबर्हिषः) = जिसने हृदयक्षेत्र से पापों का वर्जन किया है [वृजी वर्जने] उस यज्ञशील पुरुष के (अविता असि) = रक्षक हैं। इस रक्षण के लिये (सोमं पिब) = सोम का पान करिये, इसके सोम को शरीर में सुरक्षित करिये। कम्-इस आनन्दप्रद सोम को (मदाय) = जीवन में उल्लास के लिये पीजिये, शरीर में ही इसे लीन करिये [Imbibe] [२] हे (शतक्रतो) = अनन्त प्रज्ञान व शक्तिवाले प्रभो ! उस सोम का आप पान करिये (यं भागम्) = जिस भजनीय सोम को (ते) = आपकी प्राप्ति के लिये (अधारयन् =) धारण करते हैं। इस सोम के रक्षण के द्वारा ही तो हम तीव्र बुद्धि बनकर प्रभु का दर्शन कर पाते हैं। [३] हे प्रभो ! आप इस सोमरक्षण के द्वारा इन यज्ञशील पुरुषों के जीवन में (विश्वाः पृतनाः) = सब शत्रु सेनाओं का तथा (उरुज्रयः) = उनके महान् वेग का (सं सेहानः) = सम्यक् पराभव करते हैं। आप (अप्सुजित्) = सब कर्मों में हमें विजय प्राप्त कराते हैं। (मरुत्वान्) = प्रशस्त वायुवोंवाले हैं, शरीर में प्राणों के रूप से इन उत्तम वायुवों को प्राप्त कराते हैं और सत्पते सत्, अर्थात् उत्तम कर्मों के रक्षक हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण द्वारा प्रभु ही संयमी पवित्र हृदय पुरुष का रक्षण करते हैं। संयत सोम ही प्रभु-दर्शन का कारण बनता है और रोग व वासनारूप शत्रुओं का पराभव करनेवाला होता है।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, omnipotent lord of existence, omnipresent in wide wide space, commanding over cosmic waters and winds, winner of all the universal battles of evolution and doer of a hundred acts of divinity, you are the ultimate protector of the maker of soma, the devotee on the vedi waiting for the emergence of divine consciousness. O lord, arise in the heart and drink the soma of his devotion to your satisfaction, most exhilarating and reserved for you.