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स्वाहा॑कृतस्य तृम्पतं सु॒तस्य॑ देवा॒वन्ध॑सः । आ या॑तमश्वि॒ना ग॑तमव॒स्युर्वा॑म॒हं हु॑वे ध॒त्तं रत्ना॑नि दा॒शुषे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svāhākṛtasya tṛmpataṁ sutasya devāv andhasaḥ | ā yātam aśvinā gatam avasyur vām ahaṁ huve dhattaṁ ratnāni dāśuṣe ||

पद पाठ

स्वाहा॑ऽकृतस्य । तृ॒म्प॒त॒म् । सु॒तस्य॑ । दे॒वौ॒ । अन्ध॑सः । आ । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । आ । ग॒त॒म् । अ॒व॒स्युः । वा॒म् । अ॒हम् । हु॒वे॒ । ध॒त्तम् । रत्ना॑नि । दा॒शुषे॑ ॥ ८.३५.२४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:35» मन्त्र:24 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:6 | मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:24


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अश्विद्वय (देवौ) हे देवो ! आप दोनों (स्वाहाकृतस्य) स्वाहा शब्द से पवित्रीकृत (सुतस्य) शोधित (अन्धसः) ओदन से (तृम्पतम्) तृप्त होवें। शेष पूर्ववत् ॥२४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्राणसाधना द्वारा प्रकाश व आनन्द की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (देवा) = जीवन को दिव्यगुणयुक्त प्रकाशमय बनानेवाले प्राणापानो! आप (सुतस्य) = उत्पन्न हुए-हुए तथा (स्वाहाकृतस्य) = शरीर के अन्दर आहुत किये गये (अन्धसः) = सोम के पान से (तृम्पतम्) = तृप्ति का अनुभव करो, सोम को शरीर में ही व्याप्त करके जीवन को आनन्दमय बनाओ। अवशिष्ट मन्त्रभाग २२ मन्त्र पर द्रष्टव्य है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से सोम का शरीर में ही व्यापन होकर प्रकाश व आनन्द का अनुभव होता है। अगले सूक्त में श्यावाश्व ऋषि 'इन्द्र' का आराधन करते हुए कहते हैं-
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विनौ ! देवौ ! स्वाहाकृतस्य स्वाहाशब्देन पवित्रीकृतस्य सुतस्य शोधितस्य। अन्धसः ओदनस्य। तृम्पतम् ओदनेन तृप्यतम्। अत्र करणे षष्ठी। शेष पूर्ववत् ॥२४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, twin and complementary divinities of nature and humanity, come, drink of the soma offered with selfless homage and reverence to your satisfaction. Praying for protection and promotion I call upon you to come and bless the generous yajaka with the jewels of life.