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दधा॑मि ते सु॒तानां॒ वृष्णे॒ न पू॑र्व॒पाय्य॑म् । दि॒वो अ॒मुष्य॒ शास॑तो॒ दिवं॑ य॒य दि॑वावसो ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dadhāmi te sutānāṁ vṛṣṇe na pūrvapāyyam | divo amuṣya śāsato divaṁ yaya divāvaso ||

पद पाठ

दधा॑मि । ते॒ । सु॒ताना॑म् । वृष्णे॑ । न । पू॒र्व॒ऽपाय्य॑म् । दि॒वः । अ॒मुष्य॑ । शास॑तः । दिव॑म् । य॒य । दि॒वा॒व॒सो॒ इति॑ दिवाऽवसो ॥ ८.३४.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:34» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पूर्वपाय्यम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे जीव ! (वृष्णे ते) = शक्तिशाली तेरे लिये (पूर्वपाय्यं न) = सर्वमुख्य पेय वस्तु के समान (सुतानां दधामि) = इन उत्पन्न हुए हुए सोमों को धारण करता हूँ। इन सोमों के धारण से ही तू शक्तिशाली जीवनवाला बनता है। [२] हे ज्ञानधन ! तू उस प्रकाशमय शासक के प्रकाशधनको प्राप्त करनेवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम सोम को शरीर में ही सुरक्षित करें। इसे सर्वमुख्य पेय वस्तु समझें, इसे शरीर में ही पीना है [imbibe करना है]।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - As the sun vests vapours of rain in the cloud of showers, so do I vest in you the first, original and eternal knowledge, protected, protective and enjoyable, of the prime order distilled by sages from experience and vision. Then from the light of this knowledge of the sages of universal law and command, O lover of light, rise to the heaven of light on earth.