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आ नो॑ या॒ह्युप॑श्रुत्यु॒क्थेषु॑ रणया इ॒ह । दि॒वो अ॒मुष्य॒ शास॑तो॒ दिवं॑ य॒य दि॑वावसो ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no yāhy upaśruty uktheṣu raṇayā iha | divo amuṣya śāsato divaṁ yaya divāvaso ||

पद पाठ

आ । नः॒ । या॒हि॒ । उप॑ऽश्रुति । उ॒क्थेषु॑ । र॒ण॒य॒ । इ॒ह । दि॒वः । अ॒मुष्य॑ । शास॑तः । दिव॑म् । य॒य । दि॒वा॒व॒सो॒ इति॑ दिवाऽवसो ॥ ८.३४.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:34» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:11


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञान-श्रवण-सम्मिलित स्तवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे जीव ! तू (नः) = हमारे (उपश्रुति) = समीप ज्ञान-श्रवण के कार्य में (आयाहि) = आ। हमारे समीप उपस्थित होकर ज्ञान का श्रवण करनेवाला बन । हृदयस्थ प्रभु प्रेरणा देते हैं । उस प्रेरणा के सुनने से ज्ञानवृद्धि होती है। (उक्थेषु) = स्तोत्रों में (सह) = मिलकर (रणयः) = आनन्द का अनुभव कर । घर के सब व्यक्ति मिलकर बैठें और मिलकर स्तोत्रों का श्रवण करें। [२] हे ज्ञानधन जीव ! तू उस प्रकाशमय शासक के ज्ञानधन को प्राप्त कर ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम हृदयस्थ प्रभु से ज्ञान की वाणियों का श्रवण करें। घरों में सब मिलकर प्रभु का गुणगान करें । उस प्रकाशमय प्रभु से ज्ञानधन को प्राप्त करें।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Come close to us, listen to our songs of adoration of divinity, and enjoy the holy celebrations, and from the light and joy of the earthly world of rule and order, O lover of the light of divinity, rise to the light of heavenly peace and freedom.