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अ॒स्माक॑म॒द्यान्त॑मं॒ स्तोमं॑ धिष्व महामह । अ॒स्माकं॑ ते॒ सव॑ना सन्तु॒ शंत॑मा॒ मदा॑य द्युक्ष सोमपाः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākam adyāntamaṁ stomaṁ dhiṣva mahāmaha | asmākaṁ te savanā santu śaṁtamā madāya dyukṣa somapāḥ ||

पद पाठ

अ॒स्माक॑म् । अ॒द्य । अन्त॑मम् । स्तोम॑म् । धि॒ष्व॒ । म॒हा॒ऽम॒ह॒ । अ॒स्माक॑म् । ते॒ । सव॑ना । स॒न्तु॒ । शम्ऽत॑मा । मदा॑य । द्यु॒क्ष॒ । सो॒म॒ऽपाः॒ ॥ ८.३३.१५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:33» मन्त्र:15 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:15


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

स्तवन-यज्ञ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (महामह) = महान् पूज्य प्रभो ! (अद्य) = आज (अस्माकम्) = हमारे (अन्तमं स्तोमम्) = अन्तिकतम स्तोम को (धिष्व) = धारण करिये । हम हृदय के अन्तस्तल से आपके स्तोम को करनेवाले बनें। [२] हे (द्युक्ष) = ज्ञानदीप्ति में निवास करनेवाले, (सोमपाः) = हमारे सोम का रक्षण करनेवाले [प्रभु की उपासना से सोम का रक्षण होता है] (ते सवना) = आपके ये यज्ञ, आप से वेद में उपदिष्ट यज्ञ (अस्माकम्) = हमारे (शन्तमा) = अधिक से अधिक शान्ति को देनेवाले हों और (मदाय) = उल्लास के लिये हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम हृदय के अन्तस्तल से प्रभु का स्तवन करें। हमें वेदोपदिष्ट यज्ञ प्रिय हों। इन यज्ञों में हम शान्ति व आनन्द का अनुभव करें।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O lord of heavenly light, greatest of the great, lover and protector of the soma pleasure and grandeur of life, accept our most intimate prayer and praise today and grant that all our acts of homage in your honour and service be for the peace and dignity of the life we live.