न॒हि वो॒ अस्त्य॑र्भ॒को देवा॑सो॒ न कु॑मार॒कः । विश्वे॑ स॒तोम॑हान्त॒ इत् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
nahi vo asty arbhako devāso na kumārakaḥ | viśve satomahānta it ||
पद पाठ
न॒हि । वः॒ । अस्ति॑ । अ॒र्भ॒कः । देवा॑सः । न । कु॒मार॒कः । विश्वे॑ । स॒तःऽम॑हान्तः । इत् ॥ ८.३०.१
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:30» मन्त्र:1
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:37» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:1
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
दिव्य गुणधारण- प्रभु-पूजन
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (देवासः) = दिव्य गुणो ! (वः) = तुम्हारे में से कोई भी (अर्भकः) = कम महत्त्व का (नहि अस्ति) = नहीं है। सब दिव्य गुण एक से एक बढ़कर महत्त्व रखते हैं। (न कुमारकः) = आप में से कोई भी कुत्सित उपायों से किसी का नाश करनेवाला नहीं। [२] (विश्वे) = ये सब दिव्य गुण (इत्) = निश्चय से (सतः) = उस पूर्ण स्वतन्त्र सत्ता प्रभु के (महान्तः) = [ मह पूजायाम्] पूजन करनेवाले होते हैं। दिव्य गुणों का धारण ही सच्चा प्रभु - पूजन है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सब दिव्य गुण समानरूप से महत्त्वपूर्ण हैं। देव वृत्तिवाले पुरुष किसी को भी कुत्सित उपायों से मारते नहीं। इन दिव्य गुणों का धारण ही सच्चा प्रभु-पूजन है।
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O Vishvedevas, divinities of nature and humanity, none of you is a child, none an adolescent. All of you are equal and great.
