विभि॒र्द्वा च॑रत॒ एक॑या स॒ह प्र प्र॑वा॒सेव॑ वसतः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
vibhir dvā carata ekayā saha pra pravāseva vasataḥ ||
पद पाठ
विऽभिः॑ । द्वा । च॒र॒तः॒ । एक॑या । स॒ह । प्र । प्र॒वा॒साऽइ॑व । व॒स॒तः॒ ॥ ८.२९.८
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:29» मन्त्र:8
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:36» मन्त्र:8
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:8
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शिव शंकर शर्मा
मन और अहङ्कार दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (द्वा) दो देव मन और अहङ्कार (विभिः) वासनाओं के साथ (चरतः) चलते हैं और (एकया) एक बुद्धि के (सह) साथ (प्र+वसतः) प्रवास करते हैं। यहाँ दृष्टान्त देते हैं (प्रवासा+इव) जैसे दो प्रवासी सदा मिलकर चलते हैं। तद्वत्। मन और अहङ्कार बुद्धिरूप पत्नी के साथ सदा चलायमान रहते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - मन और अहङ्कार ये दोनों जीवों को अपथ में ले जानेवाले हैं। अतः इनको अपने वश में करके उत्तमोत्तम कार्य्य सिद्ध करें ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
प्राणापान का इन्द्रियाश्वों व बुद्धि के साथ निवास
पदार्थान्वयभाषाः - [१] इस शरीर में (द्वा) = ये दो अश्विनी देव, प्राण और अपान (विभिः) = इन्द्रियाश्वों के द्वारा [वि-horse] (एकया सह) = उस [एके मुख्यान्यकेवलाः] एक मुख्य साधनभूत बुद्धि के साथ (प्रचरतः) = विचरते हैं। प्राणापान, इन्द्रियों व बुद्धि के साथ जीवनयात्रा में चलते हैं। [२] ये अश्विनी देव (प्रवासा इव) = प्रवासियों के समान (वसतः) = निवास करते हैं। वे इस संसार को अपना घर नहीं मान लेते। यहाँ वे अपने को यात्रा पर प्रवास में आया हुआ मानते हैं। उनका यहाँ व्यवहार यात्रियों की तरह ही होता है। एक यात्री कम से कम भार लेकर चलता है, ये भी अपरिग्रह की वृत्ति से चलते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणापान इन्द्रियों के द्वारा सब गति करते हैं। वे बुद्धिपूर्वक यहाँ प्रवास में निवास करते हैं।
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शिव शंकर शर्मा
मनोऽहङ्कारौ दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - द्वा=द्वौ देवौ=मनोऽहंकारौ। विभिः=विर्वासना, ताभिर्वासनाभिः। सह चरतः। पुनः। एकया=बुद्ध्या। सह। प्रवसतः=प्रवासं कुरुतः। अत्र दृष्टान्तः। प्रवासा इव। यथा द्वौ प्रवासिनौ मिलित्वा चरतस्तद्वत् ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Two with flights like desire and ambition move around with one, intelligence, and reach wherever they choose to distant places like travellers. (These are the Ashvins, twin divinities of nature’s dynamics, or, at the individual’s level, ambition and ego which fly on the wings of imagination.)
