त्रीण्येक॑ उरुगा॒यो वि च॑क्रमे॒ यत्र॑ दे॒वासो॒ मद॑न्ति ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
trīṇy eka urugāyo vi cakrame yatra devāso madanti ||
पद पाठ
त्रीणि॑ । एकः॑ । उ॒रु॒ऽगा॒यः । वि । च॒क्र॒मे॒ । यत्र॑ । दे॒वासः॑ । मद॑न्ति ॥ ८.२९.७
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:29» मन्त्र:7
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:36» मन्त्र:7
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:7
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शिव शंकर शर्मा
चरणदेव का गुण दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (उरुगायः) सबके आधार होने से विस्तीर्णकीर्ति (एकः) एक चरणदेव (त्रीणि) सूर्य्यवत् तीनों स्थानों में (वि+चक्रमे) चलता है। (यत्र) जिस गमन से (देवासः) इतर इन्द्रियदेव (मदन्ति) प्रसन्न होते हैं। जब चरण चलता है, तब सुख लाभ के कारण इन्द्रिय प्रसन्न होते हैं। यदि भ्रमण न हो, तो सर्व इन्द्रियदेव रुग्ण हो जाएँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - इससे यह शिक्षा देते हैं कि मनुष्य को आलस्य करना उचित नहीं। चरण से चलकर निज और अन्यों का उपकार सदा करे ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
लोकत्रय विक्रान्ता प्रभु [विष्णु]
पदार्थान्वयभाषाः - [१] यह (एकः) = अद्वितीय (उरुगाय:) = [उरुभिः गातव्यः] बहुतों से गाया जाता हुआ, अथवा इन विशाल लोकों में गति करनेवाला प्रभु त्रीणि 'भूः भुवः स्वः' पृथिवी, अन्तरिक्ष व द्युलोक रूप तीनों लोकों को विचक्रमे सम्यक् विक्रान्त करता है। प्रभु सर्वत्र विद्यमान हैं। [२] ये वे लोक हैं, (यत्र) = जिन में (देवासः) = देववृत्ति के पुरुष (मदन्ति) = आनन्द का अनुभव करते हैं। 'वसु' भूलोक में, 'रुद्र' अन्तरिक्षलोक में तथा 'आदित्य' द्युलोक में आनन्दित होते हैं। जब हमारी अदेव वृत्ति बनती है तभी ये लोक हमें निरानन्द प्रतीत होते हैं। उस समय हम खीझते ही रहते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु तीनों लोकों में गतिवाले हैं। ये लोक देववृत्तिवाले पुरुषों के लिये आनन्दप्रद हैं।
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शिव शंकर शर्मा
चरणदेवं दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - उरुगायः=विस्तीर्णकीर्तिः सर्वाधरभूतत्वात्। एकश्चरणदेवः। त्रीणि=स्थानानि। सर्वत्रेत्यर्थः। विचक्रमे=विशेषेण क्राम्यति। पदातिवत्। यत्र विक्रमणे। देवासः=देवाः=इतरे देवाः। मदन्ति=माद्यन्ति=आनन्दन्ति। यदा चरणश्चलति तदा अन्ये इन्द्रियदेवाः प्रसीदन्ति सुखलाभात्। यदि भ्रमणं न भवेत्तदा सर्वे रुग्णा भवेयुरित्यर्थः ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - And one of universal fame worthy of homage pervades and covers all three regions of space whereon all the divinities rejoice. (This is Vishnu, omnipresent dynamic spirit of life which wards off stagnation in the living world.)
