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ति॒ग्ममेको॑ बिभर्ति॒ हस्त॒ आयु॑धं॒ शुचि॑रु॒ग्रो जला॑षभेषजः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tigmam eko bibharti hasta āyudhaṁ śucir ugro jalāṣabheṣajaḥ ||

पद पाठ

ति॒ग्मम् । एकः॑ । बि॒भ॒र्ति॒ । हस्ते॑ । आयु॑धम् । शुचिः॑ । उ॒ग्रः । जला॑षऽभेषजः ॥ ८.२९.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:29» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:36» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

मुखदेव का गुण दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (शुचिः) स्वतेज से दीप्यमान (उग्रः) तीव्रः (जलाषभेषजः) सुखकारी भैषज्यधारी (एकः) मुखदेव (हस्ते) हाथ में (तिग्मम्) तीक्ष्ण (आयुधम्) आयुध (बिभर्ति) रखता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - मुख में जो अन्नों के पीसनेवाले दन्त हैं, वे महोपकारी अस्त्र हैं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तिग्म आयुधधारी प्रभु [रुद्रः]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एकः) = वे अद्वितीय प्रभु हस्ते हाथ में (तिग्मं आयुधम्) = बड़े तीक्ष्ण अस्त्र को (बिभर्ति) = धारण करते हैं। इस आयुध के द्वारा ही तो ये सब शत्रुओं का विनाश करते हैं। [२] वे (शुचिः) = पवित्र हैं। (उग्रः) = तेजस्वी हैं। (जलाषभेषजः) = सुखकर औषधोंवाले हैं, अथवा जल रूप महान् औषधवाले हैं। जल के द्वारा हमारे सब रोगों को दूर करनेवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु हाथ में तिग्म आयुध को लिये हुए हैं, हमारे सब शत्रुओं का संहार करके हमें पवित्र व नीरोग बनाते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

मुखदेवं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - शुचिः=“शुच दीप्तौ” स्वतेजसा देदीप्यमानः। यद्वा “शुच शोके” शत्रूणां शोचयिता दुःखयिता। अतएव उग्रस्तीव्रः। अपि च। जलाषभेषजः=सुखकरभैषज्यवान्। एकः=मुखदेवः। तिग्मम्=तीक्ष्णधारमायुधम्। हस्ते। बिभर्ति। आयुध्यते संप्रहरति शत्रूननेनेति आयुधमस्त्रम् ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Another holds a razor edge weapon in hand, being pure, brilliant and terrible, and controls healing powers of medicine and immunity. (This is Rudra, also inner happiness, which is the essential and primary force of good health.)