वाशी॒मेको॑ बिभर्ति॒ हस्त॑ आय॒सीम॒न्तर्दे॒वेषु॒ निध्रु॑विः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
vāśīm eko bibharti hasta āyasīm antar deveṣu nidhruviḥ ||
पद पाठ
वाशी॑म् । एकः॑ । बि॒भ॒र्ति॒ । हस्ते॑ । आ॒य॒सीम् । अ॒न्तः । दे॒वेषु॑ । निऽध्रु॑विः ॥ ८.२९.३
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:29» मन्त्र:3
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:36» मन्त्र:3
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:3
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शिव शंकर शर्मा
कर्णदेव का गुण दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (देवेषु+अन्तः) देवों के मध्य (निध्रुविः) निश्चलस्थाननिवासी (एकः) एक कर्णरूप देव (हस्ते) हाथ में (आयसीम्) लोहनिर्मित (वाशीम्) वसूल (बिभर्ति) रखता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - प्रथम कर्णदेव सब सुनकर और निश्चयकर मनोद्वारा आत्मा से कहता है, तब वह काट-छाँट करता है, अतः यहाँ वाशी का वर्णन है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'आयसी वाशी' के धारक प्रभु [त्वष्टा]
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एकः) = वह अद्वितीय प्रभु (देवेषु अन्तः) = सब देवों में (निध्रुविः) = ध्रुवना से निवास करनेवाला है या नितरां गमनशील है अथवा संग्रामों में शत्रुओं के सामने अतिशयेन स्थिरतावाला है। [२] ये प्रभु (हस्ते) = हाथ में (आयसीम्) = लोहे के बने हुए (वाशीम्) = [शब्दयति आक्रन्दयति शत्रून् अनया] तक्षण साधन कुठार को (बिभर्ति) = धारण करते हैं। प्रभु इस वाशी के द्वारा शत्रुओं का तक्षण कर देते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सब देवों में प्रभु का निवास है। प्रभु से ही ये देवत्व को प्राप्त कर रहे हैंअपनी आयसी वाशी से सब शत्रुओं का विनाश कर देते हैं।
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शिव शंकर शर्मा
कर्णदेवं दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - देवेषु=देवानाम्। अन्तर्मध्ये। निध्रुविः=निश्चले स्थाने वर्तमानः। एकः=कर्णदेवः। हस्ते। आयसीम्=लोहनिर्मिताम्। वाशीम्= तक्षणसाधनं कुठारम्। “वाशृ शब्दे” वाशते शब्दयते आक्रन्दयति शत्रूननयेति वाशी। बिभर्ति=धारयति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Another, constant and unshakable among the divinities holds an iron axe, shaper of things. (This has been interpreted as Tvashta, divine shaper, maker and refiner of things, or the ear or Kratu, performer of holy acts.)
