ब॒भ्रुरेको॒ विषु॑णः सू॒नरो॒ युवा॒ञ्ज्य॑ङ्क्ते हिर॒ण्यय॑म् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
babhrur eko viṣuṇaḥ sūnaro yuvāñjy aṅkte hiraṇyayam ||
पद पाठ
ब॒भ्रुः । एकः॑ । विषु॑णः । सू॒नरः॑ । युवा॑ । अ॒ञ्जि । अ॒ङ्क्ते॒ । हि॒र॒ण्यय॑म् ॥ ८.२९.१
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:29» मन्त्र:1
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:36» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:1
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शिव शंकर शर्मा
मनोरूप देव का वर्णन करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (बभ्रुः) सर्वेन्द्रियधारक और पोषक (विषुणः) इतस्ततः गमनशील (सूनरः) इन्द्रियों का सुनेता तथा (युवा) सबमें योग देनेवाला (एकः) एक मनोरूप देव (हिरण्ययम्) सुवर्णमय (अञ्जि) भूषण (अङ्क्ते) दिखला रहा है ॥१॥
भावार्थभाषाः - वस्तुतः मनोरूप इन्द्रिय इस शरीर में एक अद्भुत भूषण है। इसको जो जानता है और अच्छे काम में इसको लगाता है, वही मनुष्य जाति में भूषण बनता है ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
बभ्रुः एकः [सोमः]
पदार्थान्वयभाषाः - [१] वह परमात्मा (एकः) = अद्वितीय (बभ्रुः) = सबका भरण करनेवाला है, अकेला ही सबके भरण में समर्थ है। (विषुणः) = वह [विष्वगञ्चनः] सर्वतः गमनवाला है। (सूनरः) = उत्तम नेता है । सब के लिये पथप्रदर्शन करनेवाला है। [२] (युवा) = यह नित्य तरुण है, बुराइयों को दूर करनेवाला व अच्छाइयों को हमारे साथ मिलानेवाला है [यु मिश्रणामिश्रणयोः] । यह योगियों के लिये अपने (हिरण्ययम्) = ज्योतिर्मय (अञ्जि) = रूप को (अङ्क्ते) व्यक्त करता है।
भावार्थभाषाः - प्रभु अद्वितीय भरण करनेवाले, सर्वत्र गतिवाले, उत्तम नेता व नित्य तरुण हैं। योगी लोग इनके ज्योतिर्मय रूप को देखते हैं।
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शिव शंकर शर्मा
मनोदेवं वर्णयति।
पदार्थान्वयभाषाः - बभ्रुः=बिभर्ति=इतराणि सर्वाणि इन्द्रियाणि धारयति=पोषयति च यः सः। बभ्रुः। विषुणः=विष्वगञ्चनः। इतस्ततो गमनशीलाः। सूनरः=सुष्ठु इन्द्रियाणां नेता। युवा=सर्वैरिन्द्रियैः सहयोगकर्त्ता=मिश्रयिता अमिश्रयिता च। एकः=मनोदेवः। हिरण्ययम्=हिरण्यमयम्। अञ्जि=आभरणम्। अभिव्यज्यते प्रकाश्यतेऽनेनेत्यञ्जि आभरणम्। अङ्क्ते=अभिव्यञ्जयति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - One is alert and active, all inspiring and versatile, youthful leader, joyous and true, wrapped in golden hue. (The one is interpreted as Soma, moon, and the mind.)
