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आ वां॒ वाहि॑ष्ठो अश्विना॒ रथो॑ यातु श्रु॒तो न॑रा । उप॒ स्तोमा॑न्तु॒रस्य॑ दर्शथः श्रि॒ये ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vāṁ vāhiṣṭho aśvinā ratho yātu śruto narā | upa stomān turasya darśathaḥ śriye ||

पद पाठ

आ । वा॒म् । वाहि॑ष्ठः । अ॒श्वि॒ना॒ । रथः॑ । या॒तु॒ । श्रु॒तः । न॒रा॒ । उप॑ । स्तोमा॑न् । तु॒रस्य॑ । द॒र्श॒थः॒ । श्रि॒ये ॥ ८.२६.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:26» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

राजा का कर्त्तव्य कर्म कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (नरा) हे मनुष्यों के नेता ! (अश्विना) राजा तथा मन्त्रिदल (वाम्) आप सबका (वाहिष्ठः) अतिशय अन्नादिकों का ढोनेवाला (श्रुतः) प्रसिद्ध (रथः) रथ (आयातु) प्रजाओं के गृह पर आवे और आप (तुरस्य) श्रद्धा और भक्तिपूर्वक स्तुति करते हुए पुरुषों के (स्तोमान्) स्तोत्रों को (श्रिये) कल्याण के लिये (उपदर्शथः) सुनें ॥४॥
भावार्थभाषाः - रथ शब्द यहाँ उपलक्षण है अर्थात् प्रजाओं में जहाँ-२ भोज्य पदार्थों की न्यूनता हो, वहाँ-२ राजदल रथ, अश्व, उष्ट्र आदिकों के द्वारा अन्न पहुँचाया करें ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

श्रुत वाहिष्ठ' रथ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (नरा) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो! (वाम्) = आपका (वाहिष्ठः) = जीवनयात्रा में उत्तमता से आगे और आगे ले चलनेवाला (श्रुतः) = प्रसिद्ध अथवा ज्ञान के श्रवण से युक्त (रथः) = यह शरीररथ आयातु हमें प्राप्त हो। प्राणसाधना के होने पर यह शरीरस्थ बड़ा दृढ़ बना रहता है, यह ज्ञानाग्नि से प्रकाशमय बन जाता है। यह श्रुत वाहिष्ठ रथ हमारी जीवनयात्रा की पूर्ति का उत्तम साधन बनता है। [२] हे अश्विनौ ! आप (तुरस्य) = वासनाओं का संहार करनेवाले प्रभु की (स्तोमान्) = स्तुतियों का (उपदर्शथः) = हमें ज्ञान कराते हो, हमें स्तुति की वृत्ति का बनाते हो । (श्रिये) = जिससे हमारा जीवन शोभावाला हो। प्राणसाधक पुरुष प्रभु-स्तवन करता हुआ जीवन को बड़ा शोभामय बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से यह शरीर - रथ 'वाहिष्ठ व श्रुत' बनता है, दृढ़ प्रकाशमय । प्राणसाधक प्रभु-स्तवन करता हुआ जीवन को श्री सम्पन्न बनाता है।
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शिव शंकर शर्मा

राजकर्त्तव्यकर्माह।

पदार्थान्वयभाषाः - नरा=हे सर्वस्य नेतारौ ! अश्विना=मन्त्रिनृपौ। वाम्=युवयोः। वाहिष्ठः=अतिशयेन वोढा। श्रुतः=विख्यातः। रथः। आयातु। युवाम्। तुरस्य=शीघ्रं स्तुतिं कुर्वतः पुरुषस्य। स्तोमान्। श्रिये। उपदर्शथः=शृणुतम् ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, harbingers of light and grace, let your strongest chariot of renown come and transport you here to us where you may, we pray, listen and appreciate the ardent devotee’s songs of adoration and bless them with the honour and dignity of life.