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म॒हान्ता॑ मि॒त्रावरु॑णा स॒म्राजा॑ दे॒वावसु॑रा । ऋ॒तावा॑नावृ॒तमा घो॑षतो बृ॒हत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahāntā mitrāvaruṇā samrājā devāv asurā | ṛtāvānāv ṛtam ā ghoṣato bṛhat ||

पद पाठ

म॒हान्ता॑ । मि॒त्रावरु॑णा । स॒म्ऽराजा॑ । दे॒वौ । असु॑रा । ऋ॒तऽवा॑नौ । ऋ॒तम् । आ । घो॒ष॒तः॒ । बृ॒हत् ॥ ८.२५.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वे कैसे हों।

पदार्थान्वयभाषाः - (महान्ता) जो सब काम में महान् (सम्राजा) जगत् के शासक (देवौ) दिव्यगुणसम्पन्न (असुरा) परमबलवान् (ऋतावानौ) सद्धर्म पर चलनेवाले (मित्रावरुणा) मित्र और वरुण हैं, ये दोनों (ऋतम्) ईश्वरीय सत्य नियम को (बृहत्) बृहत् रूप से (आघोषतः) प्रकाशित करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - वे सदा ईश्वरीय नियमों को देश-२ में फैलाया करें ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सम्राजा देवौ असुरा

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (मित्रावरुणा) = स्नेह व निर्देषता के भाव (महान्ता) = महान् हैं, पूज्य हैं। महिमावाले हैं, (सम्राजा) = ये जीवन को सम्यक् राजमान [दीप्त] बनाते हैं। (देवौ) = प्रकाशमय हैं और (असुरा) = प्राणशक्ति का संचार करनेवाले हैं। द्वेष प्राणशक्ति के ह्रास का कारण होता है। [२] (ऋतावानौ) = ऋत का रक्षण करनेवाले ये मित्र और वरुण (बृहत् ऋतम्) = वृद्धि के कारणभूत ऋत को (आघोषतः) = हमारे जीवन में उच्चारित करते हैं। स्नेह व निद्वेषता के भावों से हमारा जीवन ऋतमय यज्ञमय बनता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-स्नेह व निर्देषता के भाव हमारे जीवनों को यज्ञमय बनाते हैं। इन यज्ञों के द्वारा ये हमें दीप्त, दिव्यगुणयुक्त व प्राणशक्ति सम्पन्न करते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

पुनः कीदृशौ भवेताम्।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः। महान्ता=महान्तौ। सम्राजा=सम्राजौ। देवौ। असुरा=असुरौ=बलवन्तौ=दुष्टनिग्राहकौ च। ऋतावानौ= सत्यनियमपरायणौ। ईदृशौ मित्रावरुणौ। बृहत्=महत्। ऋतम्=ईश्वरीयनियमम्। आघोषतः=प्रकाशतः ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The great Mitra and Varuna, mighty refulgent rulers, are generous and divine, commanding the vision and vitality of spiritual life and vigour. Dedicated to the law of eternity, in their life they define and proclaim that universal law in the living form of yajnic action.