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न ते॑ स॒व्यं न दक्षि॑णं॒ हस्तं॑ वरन्त आ॒मुर॑: । न प॑रि॒बाधो॑ हरिवो॒ गवि॑ष्टिषु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na te savyaṁ na dakṣiṇaṁ hastaṁ varanta āmuraḥ | na paribādho harivo gaviṣṭiṣu ||

पद पाठ

न । ते॒ । स॒व्यम् । न । दक्षि॑णम् । हस्त॑म् । व॒र॒न्ते॒ । आ॒ऽमुरः॑ । न । प॒रि॒ऽबाधः॑ । ह॒रि॒ऽवः॒ । गोऽइ॑ष्टिषु ॥ ८.२४.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

वह स्वतन्त्र है, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिवः) हे संसाररक्षक देव ! (आमुरः) जगद्विध्वंसक दुष्टजन (ते+सव्यम्+हस्तम्) तेरे बाएँ हाथ को (न+वरन्ते) रोक नहीं सकते, (न+दक्षिणम्) तेरे दाहिने हाथ को भी रोक नहीं सकते (गविष्टिषु) पृथिव्यादि जगत् रचनारूप यज्ञ में (परिबाधः+न) बाधा डालनेवाले तेरे कोई नहीं हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - वह सर्वोपरि है, इसमें कहना ही क्या, उसी के अधीन यह विश्व है, अतः वही उपास्य है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आमुरः-परिबाधः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो ! (आमुरः) = संग्राम में आभिमुख्येन मरनेवाले व्यक्ति (ते) = आपके (न सव्यम्) = न तो बायें हाथ को (न दक्षिणं हस्तम्) = और न ही दायें हाथ को वरन्त रोकते हैं। अर्थात् इनके लिये आप दोनों हाथों से धनों को देनेवाले होते हैं। [२] हे (हरिवः) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करानेवाले प्रभो ! (गविष्टिषु) = ज्ञान की वाणियों के अन्वेषणात्मक यज्ञों में चलनेवाले और अतएव (परिबाधः) = समन्तात् शत्रुओं का बाधन करनेवाले लोग (न) = आपके हाथों को रोकते नहीं। इनके लिये भी आप सब ऐश्वर्यों के देनेवाले होते हैं। गविष्टियों में चलना, स्वाध्याय में प्रवृत्त रहना, (अन्तः) = शत्रुओं के बाधन का सर्वोत्तम साधन है। इन व्यक्तियों के लिये प्रभु सब धनों को प्राप्त कराते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम संग्राम में पीठ न दिखानेवाले, रणांगण में प्राण परित्याग करनेवाले बनें। हम स्वाध्याय प्रवृत्त होकर समन्तात् काम-क्रोध आदि शत्रुओं का बाधन करें। प्रभु हमारे लिये सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करायेंगे।
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शिव शंकर शर्मा

स स्वतन्त्रोऽस्तीति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे हरिवः=हे संसाररक्षक देव ! आमुरः=आमारयन्तीति आमुरो दुष्टः। ते=तव। सव्यं हस्तम्। न+वरन्ते=निवारयितुं न शक्नुवन्ति। न च दक्षिणं हस्तम्। गविष्टिम्= पृथिव्यादिजगत्सु। तव। न केचन। परिबाधः=पारबाधमानाः शत्रवः ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The forces of negativity and destruction cannot stay your left hand of generosity nor can they resist your right hand. Nor do preventive forces stand in the ways of your progress and evolution, O lord controller of the dynamics of existence.