वांछित मन्त्र चुनें

य ऋक्षा॒दंह॑सो मु॒चद्यो वार्या॑त्स॒प्त सिन्धु॑षु । वध॑र्दा॒सस्य॑ तुविनृम्ण नीनमः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya ṛkṣād aṁhaso mucad yo vāryāt sapta sindhuṣu | vadhar dāsasya tuvinṛmṇa nīnamaḥ ||

पद पाठ

यः । ऋक्षा॑त् । अंह॑सः । मु॒चत् । यः । वा॒ । आर्या॑त् । स॒प्त । सिन्धु॑षु । वधः॑ । दा॒सस्य॑ । तु॒वि॒ऽनृ॒म्ण॒ । नी॒न॒मः॒ ॥ ८.२४.२७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:27 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:27


0 बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

विघ्नविनाश के लिये पुनः प्रार्थना।

पदार्थान्वयभाषाः - (वः) जो परमात्मा हम लोगों को (ऋक्षात्+अंहसः) घातक (यद्वा) ऋक्ष पशुवत् भयानक पाप से (मुचत्) छुड़ाता है (वा) अथवा (यः) जो (सप्तसिन्धुषु) सर्पणशील नदियों के तट पर (आर्य्यात्) शोभा और सौभाग्य दिखलाता है यद्वा (सप्तसिन्धुषु) नयनादि सप्त इन्द्रिययुक्त शिर में विज्ञान देता है, वही सबका पूज्य है। (तुविनृम्ण) हे बहुधन इन्द्र ! (दासस्य) जगत् में उपद्रवकारी मनुष्य को दूर करने के लिये (वधः) हननसाधक आयुध (नीनमः) नीचे कर ॥२७॥
भावार्थभाषाः - हमारे जो समय-२ पर विघ्न उत्पन्न होते हैं, उनके विनाश के लिये भी वही प्रार्थनीय है ॥२७॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विनाशक पाप से छुटकारा

पदार्थान्वयभाषाः - (य:) = जो प्रभु (ऋक्षान्) = [ऋन् मनुष्यान् क्षणोति] मनुष्यों का संहार करनेवाले (अंहसः) = पाप से (मुचत्) = मुक्त करते हैं। (यः वा) = या जो (सप्त सिन्धुषु) = सातों समुद्रों में होनेवाले धनों को स्तोताओं के लिये (अर्यात्) = प्रेरित करते हैं । हे (तुविनृम्ण) = महान् धन व बल वाले प्रभो ! वे आप दासस्य हमारा उपक्षय करनेवाले इस वासनारूप शत्रु के (वधः) = वध साधन आयुध को (नीनमः) = नत करते हैं, झुका देते हैं। यह दास हमारा उपक्षय नहीं कर पाता।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु पापों से मुक्त करके हमें सब ऐश्वर्यों को देते हैं। हमारा उपक्षय करनेवाली वासना को विनष्ट करते हैं।
0 बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

विघ्नविनाशाय पुनः प्रार्थना।

पदार्थान्वयभाषाः - य इन्द्रः। अस्मान्। ऋक्षात्=घातकात्=ऋक्षपशुवद् भयानकात्। अंहसः=पापात्। मुचत्=मुञ्चति यः। सप्तसिन्धुषु=सर्पणशीलासु नदीषु। वा=यद्वा। आर्य्यात्=धनं प्रेरयति। यद्वा। सप्तसिन्धुषु=शिरःसु। विज्ञानं प्रेरयति। हे तुविनृम्ण=बहुधनेन्द्र ! दासस्य=उपक्षपितुर्जनस्य बधाय। बध=हननसाधकमायुधम्। नीनमः=नमय ॥२७॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - To Indra, who saves from sin and violence, and releases the waters of life into the seven seas of existence, we bow and pray: O lord of the world’s wealth and power, honour and glory, strike down the fatal weapon of the saboteur and the destroyer.