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इन्द्र॑ स्थातर्हरीणां॒ नकि॑ष्टे पू॒र्व्यस्तु॑तिम् । उदा॑नंश॒ शव॑सा॒ न भ॒न्दना॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indra sthātar harīṇāṁ nakiṣ ṭe pūrvyastutim | ud ānaṁśa śavasā na bhandanā ||

पद पाठ

इन्द्र॑ । स्था॒तः॒ । ह॒री॒णा॒म् । नकिः॑ । ते॒ । पू॒र्व्यऽस्तु॑तिम् । उत् । आ॒नं॒श॒ । शव॑सा । न । भ॒न्दना॑ ॥ ८.२४.१७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:17 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:17


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शिव शंकर शर्मा

उसकी महिमा दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (हरीणाम्+स्थातः) हे इन सम्पूर्ण जगतों का अधिष्ठाता ! (इन्द्र) हे ईश्वर ! (ते+पूर्व्यस्तुतिम्) तेरी पूर्णस्तुति को (नकिः+शवसा+उदानंश) न कोई देव या मनुष्य अतिक्रमण कर सकता (न+भन्दना) स्तुति के सामर्थ्य से भी तुझसे कोई बढ़ नहीं सकता ॥१७॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर अनन्त शक्तिशाली है। उसी की स्तुति सब करते हैं, अतः हम भी उसी को पूजें ॥१७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

न शवसा, न भन्दना

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् ! (हरीणां स्थातः) = इन्द्रियाश्वों के अधिष्ठाता प्रभो ! (ते) = आपकी (पूर्व्यस्तुतिम्) = पालन व पूरण करनेवाली बातों में सर्वोत्तम इस स्तुति को (नकिः उदानंश) = कोई भी अति व्याप्त नहीं कर पाता, कोई भी व्यक्ति आपकी स्तुति का अतिक्रमण करने में समर्थ नहीं होता। [२] (न शवसा) = न तो बल से आपको कोई अतिक्रान्त करता है और (न भन्दना) = न कल्याण व सुख से कोई आपको लांघनेवाला है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु का स्तवन करते हैं। यह स्तुति हमारी न्यूनताओं को दूर करके हमारा पूरण करती है। प्रभु हमें 'बल, कल्याण व सुख प्राप्त कराते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

तस्य महिमानं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे हरीणाम्=परस्परहणशीलानां जगताम्। स्थातः=अधिष्ठातः ! हे इन्द्र=ईश्वर ! ते=तव। पूर्व्यस्तुतिम्=पूर्णस्तुतिम्। नकिः=नहि कश्चिदन्यो देवो वा मानवो वा। शवसा=स्वशक्त्या। उदानंश=अतिक्रामति। न च। भन्दना=स्तुत्या वा। तव पूर्व्यस्तुतिम्। उदानंश ॥१७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, glorious lord president of the moving worlds of existence, no one ever by might or by commanding adoration has been able to equal, much less excel, the prime worship offered to you.