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यो अ॑स्मै ह॒व्यदा॑तिभि॒राहु॑तिं॒ मर्तोऽवि॑धत् । भूरि॒ पोषं॒ स ध॑त्ते वी॒रव॒द्यश॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo asmai havyadātibhir āhutim marto vidhat | bhūri poṣaṁ sa dhatte vīravad yaśaḥ ||

पद पाठ

यः । अ॒स्मै॒ । ह॒व्यदा॑तिऽभिः । आऽहु॑तिम् । मर्तः॑ । अवि॑धत् । भूरि॑ । पोष॑म् । सः । ध॒त्ते॒ । वी॒रऽव॑त् । यशः॑ ॥ ८.२३.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:21 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:21


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शिव शंकर शर्मा

उपासना का फल दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो उपासक (अस्मै) इस परमेश्वर के निमित्त अर्थात् ईश्वरप्रीत्यर्थ (हव्यदातिभिः) हव्यादि पदार्थों के दानों के साथ-२ (आहुतिम्) अग्निहोत्रादि शुभकर्मों में होमसम्बन्धी आहुति (अविधत्) करता है, वह (भूरि) बहुत (पोषम्) पुष्टिकर (वीरवत्) वीर पुत्रादियुक्त (यशः) यश (धत्ते) पाता है ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो जन नियमपूर्वक अग्निहोत्रादि कर्म करता है, उसको इस लोक में धन, यश, पुत्र और नीरोगिता प्राप्त होती है ॥२१॥
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आर्यमुनि

अब उक्त यज्ञ का फल कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः, मर्तः) जो मनुष्य (अस्मै) इसके लिये (हव्यदातिभिः) हव्यपदार्थों का दान करके (आहुतिम्) आह्वान अथवा तृप्ति को (अविधत्) करता है, (सः) वह (भूरि) बहुत से (पोषम्) पोषणोपयोगी अन्न-वस्त्रादि पदार्थ तथा (वीरवत्, यशः) वीर सन्तान सहित कीर्त्ति को (धत्ते) धारण करता है ॥२१॥
भावार्थभाषाः - भाव यह है कि जो पुरुष उक्त प्रकार के यज्ञ करते, या यों कहो कि यज्ञ में सत्कारार्ह उपर्युक्त विद्वान् योद्धाओं को आह्वान करके उनका सत्कार करते हैं, वे वीर सन्तानों को लाभ करते और विविध प्रकार के ऐश्वर्य्यों से विभूषित होते हैं ॥२१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

भूरि षोषं, वीरवद् यशः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः मर्तः) = जो मनुष्य अस्मै इस प्रभु के लिये (हव्यदातिभिः) = हव्य पदार्थों के दान के द्वारा, यज्ञशीलता के द्वारा भोगवृत्ति से ऊपर उठने के द्वारा (आहुतिम्) = अपने अर्पण को [ हु दाने] (अविधत्) = करता है, (सः) = वह (भूरि) = खूब ही (षोषम्) = पोषण को धत्ते धारण करता है। जैसे माता के प्रति अर्पित हुआ हुआ बालक माता से पोषण को प्राप्त करता है, उसी प्रकार जब हम प्रभु के प्रति अपना अर्पण करते हैं, तो प्रभु हमारा समुचित पोषण करते हैं। [२] यह प्रभु के प्रति अपना अर्पण करनेवाला व्यक्ति (वीरवत्) = प्रशस्त वीर सन्तानोंवाले (यशः) = यश को धारण करता है। प्रभु इसे उत्तम सन्तानों को प्राप्त कराते हैं तथा यशस्वी जीवनवाला बनाते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-भोगवृत्ति से ऊपर उठकर त्याग वृत्तिवाले बनकर हम प्रभु का पूजन करते हैं, प्रभु के प्रति अपना अर्पण करते हैं। प्रभु हमारा खूब ही पोषण करते हैं और वीर सन्तानों के साथ यशस्वी जीवन को प्राप्त कराते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

उपासनाफलं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - यो मर्तः। अस्मै=परमेश्वराय निमित्ताय=ईश्वरप्रीत्यर्थम्। हव्यदातिभिः=हव्यादिपदार्थानां दानैः सह। आहुतिम्= अग्निहोत्रादिकर्मसु होमाहुतिम्। अविधत्=करोति। स मनुष्यः। भूरि=बहु। पोषम्=पुष्टिकरम्। वीरवत्=वीरपुत्रपौत्रादियुक्तम्। यशः। धत्ते ॥२१॥
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आर्यमुनि

अथ यज्ञानां प्रकारान्तरेण फलं वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः, मर्तः) यो मनुष्यः (अस्मै) अस्मै शूरपतये (हव्यदातिभिः) हव्यपदार्थदानैः (आहुतिम्) आह्वानम् (अविधत्) विदधाति (सः) स जनः (भूरि) बहु (पोषम्) अन्नादि पोषणम् (वीरवत्, यशः) वीरपुत्रसहितं यशश्च (धत्ते) दधाते ॥२१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The mortal who, with faith and reverence, dedicates himself to this Agni and offers oblations into the fire divine with holy fragrant materials receives the blessings of ample health and nourishment, honour and fame and the gift of heroic progeny.