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तं हु॑वेम य॒तस्रु॑चः सु॒भासं॑ शु॒क्रशो॑चिषम् । वि॒शाम॒ग्निम॒जरं॑ प्र॒त्नमीड्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ huvema yatasrucaḥ subhāsaṁ śukraśociṣam | viśām agnim ajaram pratnam īḍyam ||

पद पाठ

तम् । हु॒वे॒म॒ । य॒तऽस्रु॑चः । सु॒ऽभास॑म् । शु॒क्रऽशो॑चिषम् । वि॒शाम् । अ॒ग्निम् । अ॒जर॑म् । प्र॒त्नम् । ईड्य॑म् ॥ ८.२३.२०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:20 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:20


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शिव शंकर शर्मा

उसकी स्तुति दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यतस्रुचः) स्रुगादि सामग्रीसम्पन्न (तम्+अग्निम्+हुवेम) उस परमात्मा की स्तुति करते हैं, जो (सुभासम्) शोभनतेजयुक्त (शुक्रशोचिषम्) शुद्ध तेजस्वी (विशाम्) प्रजाओं का स्वामी (अजरम्) अजर (प्रत्नम्) पुराण (ईड्यम्) और स्तवनीय है ॥२०॥
भावार्थभाषाः - हम मनुष्य वेदविहित कर्मों तथा उपासना, दोनों को साथ-२ किया करें ॥२–०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यतस्रुचः) हाथ में स्रुक्=यज्ञपात्र विशेष लिये हुए हम लोग (तम्) उस (सुभासम्) सुन्दर कान्तिवाले (शुक्रशोचिषम्) प्रज्वलित तेजवाले (विशाम्, अग्निम्) प्रजाओं के अग्रणी (अजरम्) युवावस्थाप्राप्त (प्रत्नम्) अभ्यस्त कर्मोंवाले (ईड्यम्) अतएव प्रशंसायोग्य शूरपति का (हुवेम) आह्वान करते हैं ॥२०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि याज्ञिक पुरुष हाथ में स्रुक् लेकर यज्ञसदन में आये हुए उस दिव्य कान्तिवाले, युवा तथा प्रशंसनीय शूरवीर योद्धा का सत्कार करें ॥२०॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रत्नमीड्यम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यतस्त्रुचः) = [वाग् वै स्रुचः श० ६ | ३ | १।८] संयत वाणीवाले होते हुए हम (तम्) = उस प्रभु को (हुवेम) = पुकारते हैं। जो प्रभु (सुभासम्) = उत्तम दीप्तिवाले हैं और (शुक्रशोचिषम्) = देदीप्यमान ज्ञान-ज्योतिवाले हैं। [२] उस प्रभु को हम संयतवाक् बनकर स्तुत करते हैं, जो (विशाम्) = सब प्रजाओं के (अग्निम्) = अग्रेणी हैं, (अजरम्) = कभी जीर्ण होनेवाले नहीं, (प्रत्नम्) = सनातन हैं और (ईड्यम्) = स्तुति के योग्य हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- वाणी का संयम करते हुए हम प्रभु का आराधन करते हैं, तो प्रभु हमारी ज्ञानदीप्ति व पवित्रता को बढ़ानेवाले होते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

तस्य स्तुतिं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - यतस्रुचः=स्रुगादिसामग्रीसम्पन्ना वयम्। तमेवाग्निम्। हुवेम=आमन्त्रयामः=स्तुमः। कीदृशम्। सुभासम्= शोभनतेजस्कम्। शुक्रशोचिषम्=शुद्धतेजस्कम्। विशाम्= प्रजानाम्। स्वामिनम्। अजरम्। प्रत्नम्=पुराणम्। ईड्यम्=स्तुत्यम् ॥२०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यतस्रुचः) बद्धस्रुचः याज्ञिका वयम् (तम्) तादृशम् (सुभासम्) सुदीप्तिं (शुक्रशोचिषम्) दीप्ततेजस्कम् (विशाम्, अग्निम्) प्रजानामग्रण्यम् (अजरम्) युवानम् (प्रत्नम्) कृतस्वकर्माभ्यासम् (ईड्यम्) अतएव स्तुत्यम् (हुवेम) आह्वयाम ॥२०॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We invoke Agni and, holding ladles of ghrta and havi, feed and serve the divine fire blissfully shining bright in flames, unaging prime power adorable for the people.