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जये॑म का॒रे पु॑रुहूत का॒रिणो॒ऽभि ति॑ष्ठेम दू॒ढ्य॑: । नृभि॑र्वृ॒त्रं ह॒न्याम॑ शूशु॒याम॒ चावे॑रिन्द्र॒ प्र णो॒ धिय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jayema kāre puruhūta kāriṇo bhi tiṣṭhema dūḍhyaḥ | nṛbhir vṛtraṁ hanyāma śūśuyāma cāver indra pra ṇo dhiyaḥ ||

पद पाठ

जये॑म । का॒रे । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । का॒रिणः॑ । अ॒भि । ति॒ष्ठे॒म॒ । दुः॒ऽध्यः॑ । नृऽभिः॑ । वृ॒त्रम् । ह॒न्याम॑ । शू॒शु॒याम॑ । च॒ । अवेः॑ । इ॒न्द्र॒ । प्र । नः॒ । धियः॑ ॥ ८.२१.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:21» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

उसकी कृपा से ही जय होता है, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुहूत) हे बहुतों से आहूत ! हे बहुपूज्य ! हे सर्वनिमन्त्रित (कारे) संग्राम में (कारिणः) हिंसा करनेवाले शत्रुओं को (जयेम) जीतें (दूढ्यः) दुर्मति पुरुषों को (अभि+तिष्ठेम) परास्त करें (वृत्रम्) विघ्नों को (नृभिः) पुत्रादिकों के साथ (हन्याम) हनन करें, इस प्रकार शत्रुओं और विघ्नों को परास्त कर (शूशुयाम) जगत् में बढ़ें। (इन्द्र) हे इन्द्र ! (नः) हम लोगों की (धियः) बुद्धियों और क्रियाओं को (आवेः) अच्छे प्रकार बचाओ ॥१२॥
भावार्थभाषाः - प्रत्येक उपासक को उचित है कि वह अपने आन्तरिक और बाह्य विघ्नों को शान्त रक्खे ॥१२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुहूत) हे अनेकों से आहूत (इन्द्र) सेनापते ! हम लोग आपकी सहायता से (कारे) शस्त्रास्त्रक्षेपणस्थान=संग्राम में “किरतेरधिकरणे घञ्” (जयेम) जय को प्राप्त हों (दूढ्यः, कारिणः) पाप बुद्धिवाले प्रतिपक्षी को (अभितिष्ठेम) पराजित करें (वृत्रम्) वैदिकपथनाशक मनुष्यों को (नृभिः) अपने सैनिकों द्वारा (हन्याम) दण्डित करें, इस प्रकार (शूशुयाम, च) यश द्वारा आपकी वृद्धि करें, अतएव (नः, धियः) आप हमारे कर्मों को (प्रावेः) सुरक्षित करें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में प्रजाओं की ओर से सेनापति से प्रार्थना है कि हे सेनापते ! आप अपनी रक्षा द्वारा ऐसा सामर्थ्य दें, जिससे हम वेदविरुद्ध अथवा आपके प्रतिकूल चलनेवाले मनुष्यों को पराङ्मुख कर सकें ॥१२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

कारिणः-दूढ्यः (जयेम)

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जाने योग्य प्रभो ! हम आपकी सहायता से (कारिणः) = [कृ हिंसावाम्] हमारा हिंसन करनेवाले 'काम-क्रोध-लोभ' आदि शत्रुओं को (कारे) = संग्राम में जयेम जीतें । तथा (दूढ्यः) = दुर्बुद्धियों को भी (अभितिष्ठेम) = पराजित करनेवाले हों। [२] (नृभिः) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्राणों के द्वारा (वृत्रम्) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को (हन्याम) = नष्ट करें । (च) = और (शूशुयाम) = अपनी शक्तियों का वर्धन करें। हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (नः धियः) = हमारी बुद्धियों को (प्र अवेः) = प्रकर्षेण रक्षित करिये। क्रम यही है- [क] वासना-विनाश, [ख] शक्तिवर्धन, [ग] तथा बुद्धियों का विकास।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु की उपासना से हिंसा करनेवाले काम-क्रोध-लोभ को तथा दुर्बुद्धियों को दूर कर पायें। वासना-विनाश के द्वारा हमारी शक्तियों का वर्धन हो तथा हम बुद्धि को सुरक्षित कर पायें।
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शिव शंकर शर्मा

तत्कृपयैव जयो भवतीति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुरुहूत ! कारे=संग्रामे। कारिणः=हिंसां कुर्वतः शत्रून्। जयेम। दूढ्यः=दुर्धियः। अभितिष्ठेम=अभिभवेम। वृत्रम्=विघ्नम्। नृभिः=पुत्रादिभिः सह। हन्याम। एवञ्च। शूशुयाम=वर्धयेमहि। हे इन्द्र ! नः=अस्माकम्। धियः। आवेः=प्रकर्षेण रक्ष ॥१२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुहूत) हे बहुभिराहूत (इन्द्र) सेनापते ! भवत्साहाय्येन (कारे) शस्त्रास्त्रविक्षेपणस्थाने संग्रामे (जयेम) जयं करवाम (दूढ्यः, कारिणः) दुर्धियः शत्रून् (अभितिष्ठेम) अभिभवेम (वृत्रम्) वारकं शत्रुम् (नृभिः) नेतृभिः (हन्याम) शातयाम (शूशुयाम, च) एवं च यशसा त्वां वर्धयेम (नः) अस्माकम् (धियः) कर्माणि (प्रावेः) प्ररक्षेः ॥१२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord of power and light of life, universally invoked, let us win over the violent in the struggle of life, discipline and subject to rule and order the obstinate and intransigent with reason, dispel darkness and destroy evil with the help of the leading lights of society, and thus grow and march forward and higher. O lord, protect and guide our thoughts and actions against temptations to go astray.