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अमा॑य वो मरुतो॒ यात॑वे॒ द्यौर्जिही॑त॒ उत्त॑रा बृ॒हत् । यत्रा॒ नरो॒ देदि॑शते त॒नूष्वा त्वक्षां॑सि बा॒ह्वो॑जसः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

amāya vo maruto yātave dyaur jihīta uttarā bṛhat | yatrā naro dediśate tanūṣv ā tvakṣāṁsi bāhvojasaḥ ||

पद पाठ

अमा॑य । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । यात॑वे । द्यौः । जिही॑ते । उत्ऽत॑रा । बृ॒हत् । यत्र॑ । नरः॑ । देदि॑शते । त॒नूषु॑ । आ । त्वक्षां॑सि ब॒हुऽओ॑जसः ॥ ८.२०.६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:20» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:37» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी विषय का वर्णन आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे मरुद्गण सैन्यनायको दुष्टजनशासको ! (वः) आप लोगों के (अमाय+यातवे) बल के कारण स्वच्छन्दपूर्वक गमन के लिये (द्यौः) अन्यान्य जिगीषु वीरपुरुष (बृहत्) बहुत स्थान आपके लिये छोड़कर (उत्तरा+जिहीते) आगे बढ़ जाते हैं (यत्र) जिसके निमित्त (नरः) जननेता और (बाह्वोजसः) भुजबलधारी आप (तनूषु) शरीरों में (त्वक्षांसि) आयुध (देदिशते) लगाते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो अच्छे सैनिक पुरुष होते हैं, उनसे सब डरते हैं, क्योंकि वे निःस्वार्थ और देशहित के लिये समर करते हैं ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे शत्रुसंहार करनेवाले योद्धाओ ! (वः, अमाय, यातवे) आपके बल को जानने के लिये (उत्तरा, द्यौः) उत्कृष्टतर द्युलोक भी (बृहत्) अन्तरिक्ष को (जिहीते) छोड़ देता है (यत्र) जब (बाह्वोजसः) बाहुपराक्रमवाले (नरः) नेता आप (तनूषु) स्वकीय शरीरों में (त्वक्षांसि) दीप्त संग्रामयोग्य आभरणों को (आदेदिशते) धारण करने लगते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि शत्रुओं का संहार करनेवाले विजयी योद्धा जब युद्ध के आभूषणों को धारण करते हैं, तब मानो द्युलोक अन्तरिक्ष लोक से नीचे आकर अपने तेज का प्रकाश करने लगता है अर्थात् योद्धाओं के युद्धसूचक चिह्न द्युलोक के समान प्रकाशवाले होते हैं, या यों कहो कि दिव्य शक्तियों को धारण किये हुए योद्धा सूर्य्यसमान दीप्तिमान् प्रतीत होते हैं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सैनिकों के लिये द्युलोक भी मार्ग छोड़ देता है

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (मरुतः) = सैनिको ! (वः) = तुम्हारे (अमाय) = बल के लिये व (यातवे) = गति के लिये (द्यौ:) = यह द्युलोक (बृहत्) = खूब ही (उत्तरा) = उद्गततर होकर (जिहीते) = गतिवाला होता है। मानो लोक भी इन सैनिकों के लिये मार्ग छोड़ देता है। [२] यह वहाँ होता है, (यत्रा) = जहाँ कि (बाह्वोजसः) = बाहुओं में बलवाले, सबल भुजाओंवाले, (नरः) = आगे और आगे बढ़नेवाले ये सैनिक (तनुषू) = अपने शरीरों पर (त्वक्षांसि) = दीप्त आयुधों को आदेदिशते आदिष्ट करते हैं, धारण करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - अस्त्रों से सुसज्जित वीरों की सेना के चलने पर द्युलोक भी मानो उनके लिये मार्ग को छोड़ देता है।
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्त्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मरुतः=दुष्टनिग्राहकाः सेनाजनाः। दुष्टान् मारयन्तीति मरुतः। वः=युष्माकम्। अमाय=बलाय। यातवे=यातुं गन्तुम्। द्यौरन्यो विजिगीयुः। बृहत्=बृहत्स्थानं विहाय। उत्तरा=उद्गततरा सती। जिहीते=गच्छति। हाङ् गतौ। यत्र। नरः=नेतारो जनानाम्। पुनः। बाह्वोजसः=बाह्वोर्भुजयोरोजो बलं येषां ते। मरुतः। तनूषु=शरीरेषु। त्वक्षांसि=आयुधानि। आ+देदिशते=धारयन्ति ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे शूराः ! (वः, अमाय, यातवे) युष्माकं बलस्य यानाय (उत्तरा, द्यौः) उत्कृष्टतरो द्युलोकोऽपि (बृहत्) अन्तरिक्षम् (जिहीते) त्यक्त्वा गच्छति (यत्र) यस्मिन् काले (बाह्वोजसः, नरः) बाहुपराक्रमा नेतारो भवन्तः (तनूषु) स्वशरीरेषु (त्वक्षांसि) युद्धाभरणानि (आदेदिशते) परिदधते ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Maruts, for the expansion of your force and power on the march, the vast skies give way farther and farther as the heroes of mighty arm put on and display their armour on their person.