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यो वेदि॑ष्ठो अव्य॒थिष्वश्वा॑वन्तं जरि॒तृभ्य॑: । वाजं॑ स्तो॒तृभ्यो॒ गोम॑न्तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo vediṣṭho avyathiṣv aśvāvantaṁ jaritṛbhyaḥ | vājaṁ stotṛbhyo gomantam ||

पद पाठ

यः । वेदि॑ष्ठः । अ॒व्य॒थिषु॑ । अश्व॑ऽवन्तम् । ज॒रि॒तृऽभ्यः॑ । वाज॑म् । स्तो॒तृऽभ्यः॑ । गोऽम॑न्तम् ॥ ८.२.२४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:2» मन्त्र:24 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:24


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शिव शंकर शर्मा

ईश्वरदान इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो इन्द्रवाची परमात्मा (अव्यथिषु) व्यथा न देनेवाले शान्तिप्रद मनुष्यों को (वेदिष्ठः) अतिशय जाननेवाला है, वह (जरितृभ्यः) तपस्या से जिन्होंने शरीर और इन्द्रियों को जीर्ण किया है, उन उपासकों को तथा (स्तोतृभ्यः) स्तुतिपाठक जनों को (अश्वावन्तम्) अक्षत इन्द्रिययुक्त तथा (गोमन्तम्) प्रशस्तवाणीयुक्त (वाजम्) विज्ञान देता है ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! यद्यपि उसके दान पृथिवी प्रभृति बहुत हैं, तथापि सर्व वस्तुओं से श्रेष्ठ दान यह है कि ये दोनों इन्द्रिय हैं। इन्हें शुभ कर्मों में लगाओ। वहाँ भी महादान विस्पष्ट वाणी है। तत्रापि विद्वान् स्तुतिपाठकों को और जितेन्द्रिय तपस्वियों को पवित्रतमा विद्यायुक्ता सदसद्विवेकिनी सुबुद्धियुक्ता वाणी देता है, जिस वाणी से जगत् को वश में कर सकते हैं। निरीह ईश्वर को भी प्रसन्न करते हैं। वही सर्वभाव से ध्येय, गेय और स्तुत्य है ॥२४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो कर्मयोगी (अव्यथिषु) अहिंसकों में (वेदिष्ठः) धनों का अत्यन्त लाभ करानेवाला है (जरितृभ्यः) स्तुति करनेवाले (स्तोतृभ्यः) कवियों के लिये (अश्वावन्तं) अश्वसहित (गोमन्तं) गोसहित (वाजं) अन्नादि समर्पित करता है ॥२४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि जो कर्मयोगी धनों का लाभ करानेवाला और जो कवि=वेदों के ज्ञाता उपासकों के लिये अश्व, गो तथा अन्नादि नाना धनों का समर्पण करनेवाला है, उसका हम लोग श्रद्धापूर्वक सत्कार करें, ताकि वह प्रसन्न होकर ऐश्वर्य्य का लाभ करानेवाला हो ॥२४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बल की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अव्यथिषु) = औरों को पीड़ित न करनेवाले सज्जनों में जो (वाजम्) = बल है, उस (अश्वावन्तम्) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाले बल को (यः) = जो प्रभु (जरितृभ्यः) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाले स्तोताओं के लिये (वेदिष्ठः) = सर्वाधिक प्राप्त करानेवाले हैं। [२] उस (गोमन्तम्) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाले बल को प्रभु (स्तोतृभ्यः) = स्तोताओं के लिये प्राप्त कराते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु स्तोताओं को वह बल प्राप्त कराते हैं, जो औरों को न पीड़ित करनेवाले पुरुषों में होता है। तथा जो बल उत्तम कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियोंवाला है।
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शिव शंकर शर्मा

ईश्वरदानमनया दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - य इन्द्रः। अव्यथिषु=अव्यथयितृषु अपीडकेषु सुखकरेषु सुखकराणां मध्ये। वेदिष्ठः=अतिशयेन वेदिता विज्ञाता प्रसिद्धः। सर्वेषां प्राणिनामाशयस्य विज्ञाताऽस्ति। सः। जरितृभ्यः=तपसा खिन्नेभ्य उपासकेभ्यः। तथा स्तोतृभ्यः=महाकविभ्यः स्तावकेभ्यः। अश्वावन्तम्= इन्द्रियवन्तम्। गोमन्तम्=शोभनवाणीमन्तम्। वाजम्= विज्ञानम्। ददातीति शेषः ॥२४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) य इन्द्रः (अव्यथिषु) अहिंसकेषु (वेदिष्ठः) अत्यन्तं धनानां लम्भयिता (जरितृभ्यः) स्तोतृभ्यः (स्तोतृभ्यः) कविभ्यः (अश्वावन्तं) अश्वैः सहितं (गोमन्तम्) गोभिः सहितं च (वाजं) अन्नादि ददाति ॥२४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Among men of yajnic love and non-violence, he is the most venerable on the vedi, harbinger of wealth and success for the celebrants and giver of nourishing food and energy full of milk and honey of the land for the singers of hymns.