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व॒यमु॑ त्वा त॒दिद॑र्था॒ इन्द्र॑ त्वा॒यन्त॒: सखा॑यः । कण्वा॑ उ॒क्थेभि॑र्जरन्ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayam u tvā tadidarthā indra tvāyantaḥ sakhāyaḥ | kaṇvā ukthebhir jarante ||

पद पाठ

व॒यम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा । त॒तित्ऽअ॑र्थाः । इन्द्र॑ । त्वा॒ऽयन्तः॑ । सखा॑यः । कण्वाः॑ । उ॒क्थेभिः॑ । ज॒र॒न्ते॒ ॥ ८.२.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:2» मन्त्र:16 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:16


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शिव शंकर शर्मा

सब ही भगवान् की स्तुति करते हैं, यह इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र (त्वायन्तः) तुझको चाहते हुए (सखायः+वयम्) हम मित्रगण (उ) निश्चितरूप से (तदिदर्थाः) आपका ही चिन्तनरूप प्रयोजनवाले होकर जैसे (त्वाम्) आपके गुणों का गान करते हैं, वैसे (कण्वाः) अन्य सब ही जीव, क्या स्थावर क्या जङ्गम, (उक्थेभिः) निज-२ भाषणों से (जरन्ते) आपकी ही स्तुति करते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - उसको सब ही पूजते हैं, किन्तु विश्वासी और आज्ञापालक जन ही फल पाते हैं, यह वैलक्षण्य है ॥१६॥
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आर्यमुनि

अब कर्मयोगी की स्तुति करना कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे कर्मयोगिन् ! (तदिदर्थाः) आप ही के समान प्रयोजनवाले, अतएव (सखायः) समान ख्यातिवाले (त्वायन्तः) आपकी कामना (उ) तथा (कण्वाः) ज्ञान के लिये परिश्रमण करते हुए (वयं) हम लोग (उक्थेभिः) आपके किये हुए कर्मों के स्तोत्रों द्वारा (त्वा) आपकी (जरन्ते) स्तुति करते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में जिज्ञासुजन कर्मयोगी की स्तुति करते हुए यह कथन करते हैं कि हे भगवन् ! आप ऐसी कृपा करें कि हम लोग आपके समान सद्गुणसम्पन्न होकर समान ख्यातिवाले हों, आप हमारी इस कामना को पूर्ण करें ॥१६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (वयम्) = हम (उ) = निश्चय से (त्वायन्तः) = आपको प्राप्त करने की कामनावले होते हुए (उ) = निश्चय से (त्वा) = आपका ही स्तवन करते हैं। (तदिदर्था:) = [तत् इत अर्धा:] वह प्रभु स्तवन ही हमारा प्रयोजन हो । अन्य लौकिक कामनाओं से स्तवन न करके हम स्तवन को स्तवन के लिये ही करें। 'स्तवन ही हमारा कर्त्तव्य है' ऐसा जानें। हवन करते हुए हम (सखायः) = आपके मित्र होते हैं। [२] (कण्वाः) = मेधावी पुरुष (उक्थेभिः) = उच्चैः गीयमान स्तोतों से (जरन्ते) = हे प्रभो! आपका स्तवन करते हैं। मूर्ख व नासमझ पुरुष ही स्तवन से दूर रहता है ।

पदार्थान्वयभाषाः - भावार्थ- हम शुद्ध भाव से, कामनारहित मन से प्रभु का स्तवन करें। यही हमारा मुख्य काम हो ।
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शिव शंकर शर्मा

सर्वे भगवन्तं स्तुवन्तीत्यनया दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वायन्तः=त्वामात्मन इच्छन्तः। पुनः सखायः=परस्परं मित्रीभूताः। पुनः=तदिदर्थाः= यत्त्वद्विषयकचिन्तनं तदित्=तदेव स एव अर्थः प्रयोजनं येषां तादृशाः सन्तः। वयं यथा। उ=निश्चयेन। त्वा=त्वां जरामहे। तथा कण्वाः=अस्मदन्ये सर्वे जीवाः स्थावरा जङ्गमाश्च। उक्थेभिः=उक्थैः स्वस्ववचनैः। जरन्ते=स्तुवन्ति त्वाम् ॥१६॥
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आर्यमुनि

अथ जिज्ञासुभिः कर्मयोगिस्तवनं वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे कर्मयोगिन् ! (तदिदर्थाः) त्वत्समानप्रयोजनाः, अतएव (सखायः) समानख्यातयः (त्वायन्तः) त्वामिच्छन्तः (कण्वाः) ज्ञानाय परिश्राम्यन्तः (वयं, उ) वयं शक्तिमिच्छवः (उक्थेभिः) त्वत्कृतकर्मसम्बन्धिस्तोत्रैः (त्वा) त्वां (जरन्ते) स्तुमः ॥१६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, we too have the same aims and objectives as you. We are your friends and admirers. We know and wish to achieve, and with all words of praise and appreciation, we adore you as others, wise devotees, do.