'सशक्त कार्यकारिणी' इन्द्रियाँ
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (महेमते) = [महते फलाय मतिर्यस्य] महान् फल के लिये बुद्धिवाले प्रभो ! अर्थात् महान् मोक्षरूप फल को प्राप्त कराने के लिये बुद्धि को देनेवाले प्रभो ! (तूतुजान:) = हमारे शत्रुओं का संहार करते हुए आप उन (अश्वेभिः) = इन्द्रियाश्वों के साथ (यज्ञं आयाहि) = हमारे जीवनयज्ञ में प्राप्त होइये, जो (प्रुषितप्सुभिः) = शक्ति से सिक्त रूपवाले, स्निग्धरूपवाले हैं व (आशुभिः) = शीघ्रता से अपने कर्मों का व्यापन करनेवाले हैं। [२] (ते) = तेरे इस उपासक के लिये (इत् हि) = निश्चय से (शाम्) = शान्ति प्राप्त हो। वस्तुतः जीवन में शान्ति तभी प्राप्त होती है जब कि इन्द्रियाँ उत्तम हों । 'सुख' का शब्दार्थ इन्द्रियों का उत्तम होना [सु] ही तो है। प्रभु कृपा से हमें वे इन्द्रियाँ प्राप्त हों जो सुरक्षित सोम के द्वारा शक्ति के सेचनवाली हों, तथा अपने कार्यों में शीघ्रता से व्याप्त होनेवाली हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-वे बुद्धि को देनेवाले प्रभु हमारे लिये सशक्त कर्मों में व्याप्त होनेवाली इन्द्रियों को दें, जिससे कि हमारा जीवन निरुपद्रव व शान्तिवाला हो ।