पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में वर्णित येन जिस 'सोमपातम मद' से, हे प्रभो! आप (दशग्वम्) = दसवें दश तक जानेवाले, अर्थात् सौ वर्ष तक दीर्घ जीवन को प्राप्त करनेवाले इस आराधक को आविथ रक्षित करते हो (तं ईमहे) = उस मद को हम आप से माँगते हैं। सोमरक्षण के द्वारा उल्लासमय होते हुए हम शतवर्ष जीवी बनें। [२] हे प्रभो! आप जिस मद से (अध्रिगुम्) = अधृतगमनवाले, मार्ग पर चलते समय वासना रूप विघ्नों से न रुक जानेवाले पुरुष को रक्षित करते हो, उसे हम चाहते हैं। जिस मद से आप (वेपयन्तम्) = शत्रुओं को कम्पित करनेवाले पुरुष को रक्षित करते हो, और जिससे (स्वर्णरम्) = प्रकाश की ओर अपने को ले जानेवाले पुरुष को आप रक्षित करते हो, उस मद को हम चाहते हैं। [३] हम उस मद को चाहते हैं (येना) = जिससे आप (समुद्रम्) = [स+मुद्] आनन्दित रहनेवाले पुरुष को रक्षित करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण से जनित उल्लास हमें दीर्घजीवी, अधृतगमन, शत्रुओं को कम्पित करनेवाला, प्रकाश की ओर चलनेवाला व आनन्दमय मनोवृत्तिवाला बनाता है।