देवता: अग्निः
ऋषि: प्रयोगो भार्गव अग्निर्वा पावको बार्हस्पत्यः ; अथवाग्नी गृहपतियविष्ठौ सहसः सुतौ तयोर्वान्यतरः
छन्द: निचृद्गायत्री
स्वर: षड्जः
हु॒वे वात॑स्वनं क॒विं प॒र्जन्य॑क्रन्द्यं॒ सह॑: । अ॒ग्निं स॑मु॒द्रवा॑ससम् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
huve vātasvanaṁ kavim parjanyakrandyaṁ sahaḥ | agniṁ samudravāsasam ||
पद पाठ
हु॒वे । वात॑ऽस्वनम् । क॒विम् । प॒र्जन्य॑ऽक्रन्द्यम् । सहः॑ । अ॒ग्निम् । स॒मु॒द्रऽवा॑ससम् ॥ ८.१०२.५
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:102» मन्त्र:5
| अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:5
| मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:5
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
वातस्वनं, पर्जन्यक्रन्द्यम्
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वातस्यनम्) = [वा - गतौ] गतिशीलता की प्रेरणा देनेवाली है ध्वनि जिसकी जो हृदयस्थरूपेण सदा प्रेरणात्मक शब्दों का उच्चारण कर रहे हैं, उन (कविम्) = सब विद्याओं का वेदवाणी द्वारा उपदेश देनेवाले [कौति सर्वाः विद्याः] (पर्जन्यक्रन्द्यम्) = बादल के समान गर्जनावाले अथवा परा तृप्ति के जनक आह्वानवाले (सहः) = शक्ति के पुञ्ज प्रभु को (हुवे) = पुकारता हूँ। [२] मैं उस प्रभु को पुकारता हूँ जो (अग्निम्) = अग्रेणी हैं, हमें उन्नतिपथ पर आगे ले चलनेवाले हैं और (समुद्रवाससम्) = सदा आनन्दमय व सभी को अपने में आच्छादित करनेवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु की प्रेरणा को सुनें, वेदाध्ययन द्वारा ज्ञान को प्राप्त करें, 'ज्ञान, कर्म, उपासना' का अपने में समन्वय करें, शक्ति का सञ्चय करें। आगे बढ़े और प्रभु की गोद में पहुँचकर ही विश्राम लें।
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - I invoke the fire, passion and vision concealed in the whistling wind, roaring thunder, the depth of the sea and the cave of the heart.
