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आ मे॒ वचां॒स्युद्य॑ता द्यु॒मत्त॑मानि॒ कर्त्वा॑ । उ॒भा या॑तं नासत्या स॒जोष॑सा॒ प्रति॑ ह॒व्यानि॑ वी॒तये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā me vacāṁsy udyatā dyumattamāni kartvā | ubhā yātaṁ nāsatyā sajoṣasā prati havyāni vītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । मे॒ । वचां॑सि । उत्ऽय॑ता । द्यु॒मत्ऽत॑मानि । कर्त्वा॑ । उ॒भा । या॒त॒म् । ना॒स॒त्या॒ । स॒ऽजोष॑सा । प्रति॑ । ह॒व्यानि॑ । वी॒तये॑ ॥ ८.१०१.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:101» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:7


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

द्युमत्तम वचन व कर्म

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्राणापान ‘नासत्या' कहलाते हैं-नासिका में होनेवाले हैं तथा सब असत्यों को दूर करनेवाले हैं। हे नासत्या प्राणापानो! (मे) = मेरे (द्युमत्तमानि) = अतिशयेन ज्योतिर्मय ज्ञान के प्रकाश से युक्त (वचांसि) = वचन (उद्यता) = उद्यत हैं। (कर्त्वा) = मेरे कर्म भी उद्यत हैं। (उभा) = आप दोनों (सजोषसा) = समानरूप से प्रीतिवाले होते हुए (आयातम्) = हमें प्राप्त होवो। आपके द्वारा ही इन द्युमत्तम वचनों व कर्मों का सम्भव होगा। [२] आप दोनों (हव्यानि) = हव्य पदार्थों के सात्त्विक भोजनों के (वीतये) = भक्षण के लिये (प्रति) [ यातम् ] = प्रतिदिन प्राप्त होवो। अर्थात् हमारे प्राणापान सात्त्विक भोजनों को ही करनेवाले हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना द्वारा हम ज्योतिर्मय ज्ञान की वाणियों को प्राप्त हों तथा ज्योतिर्मय कर्मों को करनेवाले बनें। इस साधना में हमारा भोजन बड़ा सात्त्विक हो ।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O men and women of the mortal world engaged in creative and cooperative economy, committed to truth and immortal values, listen to my words inspired by the brilliance of divinity, and, together in love and friendship, turn them to practical application and truth of achievement to create valuable materials for yajnic enjoyment of life.