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वर्षि॑ष्ठक्षत्रा उरु॒चक्ष॑सा॒ नरा॒ राजा॑ना दीर्घ॒श्रुत्त॑मा । ता बा॒हुता॒ न दं॒सना॑ रथर्यतः सा॒कं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

varṣiṣṭhakṣatrā urucakṣasā narā rājānā dīrghaśruttamā | tā bāhutā na daṁsanā ratharyataḥ sākaṁ sūryasya raśmibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वर्षि॑ष्ठऽक्षत्रौ । उ॒रु॒ऽचक्ष॑सा । नरा॑ । राजा॑ना । दी॒र्घ॒श्रुत्ऽत॑मा । ता । बा॒हुता॑ । न । दं॒सना॑ । र॒थ॒र्य॒तः॒ । सा॒कम् । सूर्य॑स्य । र॒श्मिऽभिः॑ ॥ ८.१०१.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:101» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:2


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मित्रावरुणौ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] मित्र और वरुण, अर्थात् स्नेह व द्वेष-निवारण [निर्दोषता] के भाव (वर्षिष्ठक्षत्रा) = अतिशयेन प्रवृद्ध बलवाले हैं और (उरु चक्षसा) = विशाल दृष्टि व ज्ञान प्रकाशवाले हैं। ये (नराः) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले, (राजाना) = जीवन को दीप्त बनानेवाले व (दीर्घश्रुत्तमा) = अन्धकार विदारक शास्त्र ज्ञानवाले हैं। मित्र और वरुण हमें विद्वान् बनाते हैं। [२] (ता) = वे मित्र और वरुण (बाहुता न) = दोनों भुजाओं के समान, (सूर्यस्य रश्मिभिः साकम्) = सूर्य की किरणों के साथ (दंसना रथर्यतः) = कर्मों को प्राप्त करते हैं। स्नेह व निर्देषता के भावों के होने पर मनुष्य ज्ञान के प्रकाश में यज्ञादि उत्तम कार्यों में तत्पर रहता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- स्नेह व निर्देषता के भाव हमारे बल का वर्धन करते हैं, दृष्टि को विशाल बनाते हैं, हमें उन्नतिपथ पर ले चलते हैं। दीप्त व ज्ञानयुक्त जीवनवाला बनाते हैं। यज्ञ आदि कर्मों में हमें प्रवृत्त रखते हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Leading men of most generous and disciplined strength and energy of body and mind, with broad vision, refulgent, and steeped in the knowledge of revelation over long time study and discussion, like heroes of mighty arms in action, rise high with the rays of the sun by virtue of divine love and service.