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विश्वेत्ता ते॒ सव॑नेषु प्र॒वाच्या॒ या च॒कर्थ॑ मघवन्निन्द्र सुन्व॒ते । पारा॑वतं॒ यत्पु॑रुसम्भृ॒तं वस्व॒पावृ॑णोः शर॒भाय॒ ऋषि॑बन्धवे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvet tā te savaneṣu pravācyā yā cakartha maghavann indra sunvate | pārāvataṁ yat purusambhṛtaṁ vasv apāvṛṇoḥ śarabhāya ṛṣibandhave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वा॑ । इत् । ता । ते॒ । सव॑नेषु । प्र॒ऽवाच्या॑ । या । च॒कर्थ॑ । म॒घ॒ऽव॒न् । इ॒न्द्र॒ । सु॒न्व॒ते । पारा॑वतम् । यत् । पु॒रु॒ऽस॒म्भृ॒तम् । वसु॑ । अ॒प॒ऽअवृ॑णोः । श॒र॒भायः॑ । ऋषि॑ऽबन्धवे ॥ ८.१००.६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:100» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:4» मन्त्र:6 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:6


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'पारावतं पुरुसम्भृतं ' वसु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (या) = जिन कर्मों को आप (सुन्वते) = सोमाभिषव करनेवाले, शरीर में सोम का सम्पादन करनेवाले, पुरुष के लिये चकर्थ करते हैं, (ते) = आपके (ता) = वे (विश्वा इत्) = सब कर्म ही (सवनेषु) = यज्ञों में, शुभकर्मों के प्रसंगों में (प्रवाच्या) = प्रवचन के योग्य होते हैं। यज्ञों में एकत्र होने पर लोग उन कर्मों का गायन करते हैं। [२] आप (यत्) = जो (पारावतम्) = [पारः च अवतः च] संसार सागर से पार लगानेवाला और सबका रक्षण करनेवाला, (पुरुसंभृतम्) = खूब ही सम्भरण करनेवाला [ पुरु सम्भृतं यस्मात्] (वसु) = धन है, उसे (शरभाय) = वासनाओं का हिंसन करनेवाले (ऋषिबन्धव) = वेदज्ञान को अपने साथ बाँधनेवाले ज्ञानी पुरुष के लिये (अपावृणो:) = अपावृत करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु सोमरक्षण करनेवाले पुरुष को अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त कराते हैं। वासनाओं का हिंसन करनेवाले ज्ञानी पुरुष को उत्तम रक्षक व भवबन्धनछेदक वसुओं को प्राप्त कराते हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Admirable are all those acts of kindness and grace, laudable in yajnic meets of humanity, O lord of glory, Indra, which you do graciously for the meditative soul where by you reveal the climactic, intensely concentrated wealth of beatific vision and presence for the man of austere discipline in communion, brother of the omniscient, all seeing creator, the cosmic poet.