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स सु॒क्रतु॒र्यो वि दुरः॑ पणी॒नां पु॑ना॒नो अ॒र्कं पु॑रु॒भोज॑सं नः। होता॑ म॒न्द्रो वि॒शां दमू॑नास्ति॒रस्तमो॑ ददृशे रा॒म्याणा॑म् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa sukratur yo vi duraḥ paṇīnām punāno arkam purubhojasaṁ naḥ | hotā mandro viśāṁ damūnās tiras tamo dadṛśe rāmyāṇām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। सु॒ऽक्रतुः॑। यः। वि। दुरः॑। प॒णी॒नाम्। पु॒ना॒नः। अ॒र्कम्। पु॒रु॒ऽभोज॑सम्। नः॒। होता॑। म॒न्द्रः। वि॒शाम्। दमू॑नाः। ति॒रः। तमः॑। द॒दृ॒शे॒। रा॒म्याणा॑म् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:9» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राज कार्य्यों में कौन लोग श्रेष्ठ होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (पणीनाम्) प्रशस्त व्यवहार करनेहारों के (दुरः) द्वारों को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (राम्याणाम्) रात्रियों के (तमः) अन्धकार का (तिरः) तिरस्कार करके सूर्य (ददृशे) दीखता है तथा (सुक्रतुः) सुन्दर बुद्धिवाला (अर्कम्) अन्न वा सत्कार योग्य (पुरुभोजसम्) बहुतों के रक्षक मनुष्य को (वि) विशेष कर पवित्रकर्ता (नः) हमारी (विशाम्) प्रजाओं में (मन्द्रः) आनन्ददाता (होता) दानशील (दमूनाः) दमनशील अविद्या का तिरस्कार करता है (सः) वह हमारा राजा हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोमालङ्कार है। जो सभ्य राजा लोग सूर्य के तुल्य न्याय के प्रकाशक, अविद्यारूप अन्धकार के निवारक, दुष्टों का दमन और श्रेष्ठ धार्मिकों का सत्कार करनेवाले होते हुए धर्मसम्बन्धी मार्ग को पवित्र करते हैं, वे ही सब को सत्कार करने योग्य होते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञान का प्रकाश

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सः) = वे प्रभु (सुक्रतुः) = शोभनकर्मा व शोभनप्रज्ञ हैं, (यः) = जो (पणीनाम्) = [पण व्यवहारे स्तुतौ च] प्रभु-स्मरणपूर्वक व्यवहार करनेवालों के (दूरः) = इन्द्रिय द्वारों को (वि) = खोल देते हैं, विषयवासनाओं से मुक्त करके इन्हें स्वकर्तव्य में प्रेरित करते हैं। ये प्रभु (नः) = हमारे (पुरुभोजसम्) = खूब ही पालन करनेवाले (अर्कम्) = ज्ञानसूर्य को (पुनान:) = पवित्र करते हैं, वासनारूप बादलों के आवरण से इसे रहित करते हैं। वासनामेघ के विलीन होने से ज्ञानसूर्य दीप्त हो उठता है। [२] (होता) = वे प्रभु सब कुछ देनेवाले हैं। (मन्द्रः) = आनन्दमय हैं। (दमूना:) = दान के मनवाले हैं। (राम्याणां विशाम्) = रात्रि के अन्धकार में फँसी अथवा रमण प्रवृत प्रजाओं के (तमः) = अन्धकार को (तिरः ददृशे) = तिरोहित कर देते हैं, नष्ट कर देते हैं। प्रभु की उपासना के होने स अज्ञानान्धकार नष्ट हो हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-प्रभु उपासकों के इन्द्रिय द्वारों को विजयवज्र से मुक्त कर देते हैं और इनके ज्ञान को वे दीप्त करते हैं। उपासना से विषयों में रमण करनेवाली प्रजाओं का भी अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः क राजकर्मसु वरा भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यः पणीनां दुरः पुनानो राम्याणां तमस्तिरस्कृत्य सूर्यो ददृशे तथा सुक्रतुरर्कं पुरुभोजसं वि पुनानो नो विशां मन्द्रो होता दमूना अविद्यां तिरस्करोति सोऽस्माकं राजा भवतु ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (सुक्रतुः) सुष्ठुप्रज्ञः (यः) (वि) (दुरः) द्वाराणि (पणीनाम्) स्तुत्यव्यवहारकर्तॄणाम् (पुनानः) पवित्रयन् (अर्कम्) अन्नं सत्कर्तव्यं जनं वा (पुरुभोजसम्) बहूनां रक्षितारम् (नः) अस्माकम् (होता) दाता (मन्द्रः) आनन्दयिता (विशाम्) प्रजानां मध्ये (दमूनाः) दमनशीलः (तिरः) तिरस्करणे (तमः) अन्धकारम् (ददृशे) दृश्यते (राम्याणाम्) रात्रीणाम्। राम्येति रात्रिनाम। (निघं०१.७.२) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सभ्या राजानः सूर्यवन्न्यायप्रकाशका अविद्यान्धकारनिवारका दुष्टानां दमनशीला धार्मिकाणां सत्कर्त्तारः सन्तो धर्ममार्गं पुनन्ति त एव सर्वैस्सत्कर्त्तव्या भवन्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - He is the noble performer of action who opens the doors of divinity for the celebrants, blesses and sanctifies light and food, giving protection and nourishment for all, performs yajna, gives delight, controls and ogranises people with discipline, removes darkness of the nights and appears blissful.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सभ्य राजे लोक सूर्याप्रमाणे न्यायप्रकाशक, अविद्यारूपी अंधकाराचे निवारक, दुष्टांचे दमन व श्रेष्ठ धार्मिकांचा सत्कार करतात व धर्मासंबंधीचा मार्ग प्रशस्त करतात तेच सर्वांकडून सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ २ ॥