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यो वां॑ य॒ज्ञो ना॑सत्या ह॒विष्मा॑न्कृ॒तब्र॑ह्मा सम॒र्यो॒३॒॑ भवा॑ति । उप॒ प्र या॑तं॒ वर॒मा वसि॑ष्ठमि॒मा ब्रह्मा॑ण्यृच्यन्ते यु॒वभ्या॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo vāṁ yajño nāsatyā haviṣmān kṛtabrahmā samaryo bhavāti | upa pra yātaṁ varam ā vasiṣṭham imā brahmāṇy ṛcyante yuvabhyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । वा॒म् । य॒ज्ञः । ना॒स॒त्या॒ । ह॒विष्मा॑न् । कृ॒तऽब्र॑ह्मा । स॒ऽम॒र्यः॑ । भवा॑ति । उप॑ । प्र । या॒त॒म् । वर॑म् । आ । वसि॑ष्ठम् । इ॒मा । ब्रह्मा॑णि । ऋ॒च्य॒न्ते॒ । यु॒वऽभ्या॑म् ॥ ७.७०.६

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:70» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:17» मन्त्र:6 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (नासत्या) हे सत्यवादी विद्वानों ! (समर्यः) ईश्वर की उपासनायुक्त (हविष्मान्) हविवाला (वां) तुम्हारा (यः) जो (यज्ञः) यज्ञ जिसमें (कृतब्रह्मा) वेदवेत्ता ब्रह्मा (भवाति) बनाया गया है, इस यज्ञ में (युवभ्यां) तुम्हारे द्वारा (इमा) इन (ब्रह्माणि, ऋच्यन्ते) वेदों का प्रचार (आ) भले प्रकार किया जायगा, इसलिए (वरं, वसिष्ठं) अतिश्रेष्ठ इस यज्ञ को (उप, प्रयातं) आप आकर सुशोभित करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्मप्रतिपादक वेद के प्रचारक विद्वानों ! आप इस श्रेष्ठ यज्ञ में आकर इसकी शोभा को बढ़ावें, जो परमात्मा की उपासना के निमित्त किया गया है। हे आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचारक विज्ञानी देवो ! आप हमको इस पवित्र यज्ञ में परमात्मविषयक उपदेश करें, जो मनुष्यजीवन का एकमात्र लक्ष्य है ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गृहस्थी को उपदेश

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- हे (नासत्या) = असत्याचरण न करनेवाले स्त्री-पुरुषो! (यः) = जो (यज्ञः) = पूजा-सत्संग= योग्य (हविष्मान्) = उत्तम ज्ञान अन्न से सम्पन्न (कृत-ब्रह्मा) = वेदाध्यन में कृतश्रम और धनादि में समृद्ध (वां) = आप दोनों के प्रति (समर्य:) = नाना पुरुषों सहित (भवति) = होता है आप दोनों ऐसे वरणयोग्य (वसिष्ठं) = सर्वोत्तम ‘वसु', विद्वान् वा राजा को (उप आ यातम्) = प्राप्त होओ, हे स्त्री-पुरुषो ! (युवभ्याम्) = आप दोनों के हितार्थ ही (इमा ब्रह्माणि) = ये वेदोक्त ज्ञान, अन्न, धन (ऋच्यन्ते) = ऋचाओं के रूप में प्रकट होते और प्रस्तुत किये जाते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सदाचारी गृहस्थ स्त्री-पुरुष यज्ञ तथा वेदाध्ययन के द्वारा ज्ञान प्राप्त करके पुरुषार्थ पूर्वक ऐश्वर्य को प्राप्त करें। इस प्रकार वे धनादि व सम्मान से समृद्ध बनें ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (नासत्या) हे सत्यवादिनो विद्वांसः ! (समर्यः) स्मरणीयस्येश्वरस्य सम्बन्धी (हविष्मान्) हविषा युक्तः (वाम्) युष्माकं (यः, यज्ञः) यो यज्ञोऽस्ति, अन्यच्च यत्र (कृतब्रह्मा) वेदवेत्ता ब्रह्मा (भवाति) विधीयमानोऽस्ति, तत्र यज्ञे (युवभ्याम्)  युष्माभिः (इमा) इमाः (ब्रह्माणि) वेदवाण्यः (आ) सम्यक्तया (ऋच्यन्ते) स्तोतव्याः, अतो यूयं (वरम्) श्रेष्ठं (वसिष्ठम्, उप) एनं यज्ञं प्रति (प्र, यातम्) आगच्छत ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, observers of truth and law in theory and practice, this yajna of adoration and liberal havi presided over by Vedic scholars and conducted with Vedic hymns for you in honour of Divinity is dedicated to the unity and victory of humanity over want and suffering. Come and join this holy programme of brilliance, peace and settlement for all. These words of song are chanted for you and radiate for you in living vibrations.