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उ॒त त्यद्वां॑ जुर॒ते अ॑श्विना भू॒च्च्यवा॑नाय प्र॒तीत्यं॑ हवि॒र्दे । अधि॒ यद्वर्प॑ इ॒तऊ॑ति ध॒त्थः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyad vāṁ jurate aśvinā bhūc cyavānāya pratītyaṁ havirde | adhi yad varpa itaūti dhatthaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त । त्यत् । वा॒म् । जु॒र॒ते । आ॒श्वि॒ना॒ । भू॒त् । च्यवा॑नाय । प्र॒तीत्य॑म् । ह॒विः॒ऽदे । अधि॑ । यत् । वर्पः॑ । इ॒तःऽऊ॑ति । ध॒त्थः ॥ ७.६८.६

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:68» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे राजपुरुषो ! (वां) तुम्हारे (जुरते) उत्साह के (उत) और (च्यवानाय) देशान्तर में गमन के लिये (प्रतीत्यं) प्रतिदिन (हविः, दे) हवि देते हैं, (यत्) जिससे (त्यत्) तुम्हारा कल्याण हो, सब प्राणियों को सुख (भूत्) हो और तुम (वर्पः, धत्थः) उस नूतन रूप को धारण करो, जिससे (इतः) प्रजा की (अधि, ऊति) सब ओर से रक्षा हो ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे न्यायाधीश तथा सेनाधीश राजपुरुषो ! तुम्हारे याज्ञिक लोग तुम्हारी उन्नति तथा प्रजा के कल्याणार्थ प्रतिदिन यज्ञ करें, जिससे तुम्हारा शुभ हो और तुम वैदिक कर्मों द्वारा बलयुक्त शत्रुओं पर चढ़ाई के लिये सदा सन्नद्ध रहो, जिससे प्रजा की रक्षा हो। तात्पर्य्य यह है कि जो राजा लोग अपने दर्शपौर्णमास अथवा होली दिवाली आदि ऋतुयज्ञों में अपनी सेना को सदा उत्तेजित करते हुए युद्ध के लिये सन्नद्ध रहते हैं, वे राजा प्रजा की रक्षा में समर्थ होते हैं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रक्षायुक्त रथ

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- हे (अश्विना) = वेगवान् रथों, यन्त्रों के स्वामी स्त्री-पुरुषो! आप लोग (हविर्दे) = अन्न, भूमि और उत्तम साधनों के दाता (जुरते) = वृद्ध, मान्य च्यवानाय जाने को उद्यत पुरुष हितार्थ (प्रतीत्यम्) = प्रत्येक देश में पहुँचने योग्य (इत: ऊति) = इधर-उधर से रक्षायुक्त, (वर्पः) = उत्तम रूपयुक्त रथादि (अधि धत्थः) = प्रदान करते रहो। (वां त्यत्) = आप दोनों का वही (प्रतीत्यं भूत्) = प्रसिद्धकर कर्म है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - जो यन्त्रों व रथों वाहनों के स्वामी हैं वे देश-विदेश आने-जाने के लिए यात्रियों व व्यापारियों को समय पर वाहन उपलब्ध करावें तथा उन वाहनों व यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था भी करें।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे राजपुरुषाः ! (वां) युष्माकं (जुरते) उत्साहाय (च्यवानाय) देशान्तरगमनाय (उत) च (प्रतीत्यं) प्रतिदिनं (हविर्दे) हविर्दातारः स्मः। (यत्) यतः (त्यत्) भवतां कल्याणम् अखिलप्राणिनां सुखञ्च (भूत्) स्यात् अन्यच्च यूयं  (वर्पः) सुरूपान् (धत्थः) धारयत, यस्माद्धेतोः (अधि) सर्वतः (इतः) प्रजानां (ऊति) रक्षा स्यात् ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And let that insight, incentive and experiment of your help for people in need be for the weak and elderly, for those on the move such as the deprived, the fallen, uprooted and refugees, and let it be for those who give in charity for the sake of charity. That is the philanthropic role you take on for the protection of people.