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अंसे॒ष्वा म॑रुतः खा॒दयो॑ वो॒ वक्षः॑सु रु॒क्मा उ॑पशिश्रिया॒णाः। वि वि॒द्युतो॒ न वृ॒ष्टिभी॑ रुचा॒ना अनु॑ स्व॒धामायु॑धै॒र्यच्छ॑मानाः ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aṁseṣv ā marutaḥ khādayo vo vakṣassu rukmā upaśiśriyāṇāḥ | vi vidyuto na vṛṣṭibhī rucānā anu svadhām āyudhair yacchamānāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अंसे॑षु। आ। म॒रु॒तः॒। खा॒दयः॑। वः॒। वक्षः॑ऽसु। रु॒क्माः। उ॒प॒ऽशि॒श्रि॒या॒णाः। वि। वि॒द्युतः॑। न। वृ॒ष्टिऽभिः॑। रु॒चा॒नाः। अनु॑। स्व॒धाम् आयु॑धैः। यच्छ॑मानाः ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:13 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:24» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर योद्धा कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) पवनों के समान बलिष्ठ मनुष्यो ! जो (उपशिश्रियाणाः) समीप सेवनेवाले (वक्षःसु) हृदयों में (रुक्माः) देदीप्यमान (खादयः) भक्षण करते हैं (वृष्टिभिः) वर्षाओं से जैसे (विद्युतः) बिजुली (न) वैसे (अनु, स्वधाम्) अनुकूल अन्न को (वि, रुचानाः) प्रदीप्त करते हुए (आयुधैः) शस्त्र और अस्त्र युद्ध के साधनों से शत्रुओं को (यच्छमानाः) पराजय देनेवाले उन (वः) आप की (अंसेषु) भुजाओं की मूलों में बल (आ) सब ओर से वर्तमान है, वे आप लोग विजय प्राप्त होनेवाले होते हैं ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे शूरवीर पुरुषो ! जैसे बिजुली वर्षाओं के साथ ही प्रकाशित होती है, वैसे ही आप लोग शस्त्र और अस्त्रों से प्रकाशित होओ और अपने शरीर बल को बढ़ाके और उत्तम सेना का आश्रय लेकर शत्रुओं को पराजय देओ ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

राष्ट्र रक्षक

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- हे (मरुतः) = वीर पुरुषो! विद्वान् पुरुषो! (वः) = आपके (अंसेषु) = कन्धों पर (खादय:) = शस्त्र और (वक्षः सु) = छातियों पर (रुक्माः) = कान्तियुक्त आभूषण (उप शिश्रियाणाः) = शोभा दें। आप लोग (वृष्टिभिः विद्युतः न) = वर्षाओं से बिजुलियों के समान (आयुधैः) = हथियारों से (रुचाना:) = चमकते हुए (स्वधाम्) = जलवत् अन्न और राष्ट्र-भूमि के (अनु यच्छमाना:) = अनुसार उसको वश करते हुए विजय करो।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- राष्ट्र के रक्षक वीर पुरुष अपने कन्धों पर शस्त्र तथा छाती पर कान्तियुक्त कवच धारण कर अपने शत्रुओं पर वर्षा के समान हथियार से तीव्र प्रहार कर राष्ट्र को विजय प्राप्त करावें।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्योद्धारः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! ये उपशिश्रियाणा वक्षःसु रुक्माः खादयो वृष्टिभिर्विद्युतो नानु स्वधां वि रुचाना आयुधैश्शत्रून् यच्छमानाः तेषां वोंऽसेषु बलमा वर्तते ते भवन्तो विजयिनो भवन्ति ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अंसेषु) भुजमूलेषु (आ) (मरुतः) वायव इव बलिष्ठा मनुष्याः (खादयः) ये खादन्ति ते (वः) युष्माकम् (वक्षःसु) हृदयदेशेषु (रुक्माः) देदीप्यमानाः (उपशिश्रियाणाः) ये उपश्रयन्ति ते (वि) (विद्युतः) स्तनयित्नवः (न) इव (वृष्टिभिः) (रुचानाः) रोचमानाः (अनु) (स्वधाम्) अन्नम् (आयुधैः) शस्त्रास्त्रैः युद्धसाधनैः (यच्छमानाः) निग्रहीतारः ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे शूरवीरा ! मनुष्या यथा विद्युतो वृष्टिभिस्सहैव प्रकाशन्ते तथैव यूयं शस्त्रास्त्रैः प्रकाशध्वं स्वशरीरबलं वर्धयित्वोत्तमसेनामुपश्रित्य शत्रुन् निगृह्णीत ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Maruts, warriors vibrant as winds, on your shoulders you wear deadly weapons which, bright and blazing, decorate your chest. Thus wielding and whirling your weapons in keeping with your innate strength and chivalry, in your yajnic endeavours of development and progress, you shine like flashes of lightning with showers of rain.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे शूरवीरांनो! जशी विद्युत पर्जन्यासह प्रकाशित होते तसेच तुम्ही शस्त्र-अस्त्रांनी सुसज्जित व्हा व आपले शरीरबल वाढवून उत्तम सेनेच्या साह्याने शत्रूंचा पराजय करा. ॥ १३ ॥