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आ॒दि॒त्यासो॒ अदि॑तिर्मादयन्तां मि॒त्रो अ॑र्य॒मा वरु॑णो॒ रजि॑ष्ठाः। अ॒स्माकं॑ सन्तु॒ भुव॑नस्य गो॒पाः पिब॑न्तु॒ सोम॒मव॑से नो अ॒द्य ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ādityāso aditir mādayantām mitro aryamā varuṇo rajiṣṭhāḥ | asmākaṁ santu bhuvanasya gopāḥ pibantu somam avase no adya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒दि॒त्यासः॑। अदि॑तिः। मा॒द॒य॒न्ता॒म्। मि॒त्रः। अ॒र्य॒मा। वरु॑णः। रजि॑ष्ठाः। अ॒स्माक॑म्। स॒न्तु॒। भुव॑नस्य। गो॒पाः। पिब॑न्तु। सोम॑म्। अव॑से। नः॒। अ॒द्य ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:51» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (रजिष्ठाः) अतीव प्रीति करते हुए (अदितिः) अखण्डित नीति (मित्रः) मित्र (अर्यमा) व्यवस्था देनेवाला (वरुणः) श्रेष्ठ (अस्माकम्) हमारे (भुवनस्य) जल आदि लोकसमूह की (गोपाः) रक्षा करनेवाले हैं (नः) हमारी (अवसे) रक्षा आदि के लिये (मादयन्ताम्) आनन्द देते हैं (अद्य) आज (सोमम्) बड़ी-बड़ी ओषधियों के रस को (पिबन्तु) पीवें, वैसे वे (आदित्यासः) पूर्ण विद्वान् वा संवत्सर के महीने हमारे जलादि वा लोक-समूह की रक्षा करनेवाले (सन्तु) हों ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे विद्वानो ! तुम आदित्य के समान विद्या प्रकाश से, वैद्य के समान ओषधियों के सेवने से नीरोग होकर हमारा भी आरोग्य करो ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आदित्य ब्रह्मचारी

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ - (आदित्यास:) = पूर्ण ब्रह्मचारी विद्वान्, 'अदिति' प्रभु परमेश्वर के उपासक स्वयं (अदितिः) = यह भूमि या माता, पितादि, (मित्रः) = स्नेही जन, (अर्यमा) = दुष्टों का नियन्ता (वरुणः) = श्रेष्ठ जन, (रजिष्ठाः) = अति धर्मात्मा, वे सब (अस्माकं) = हमारे (भुवनस्य) = लोक के (गोपा:) = रक्षक (सन्तु) = हों। वे (नः अवसे) = हमारी रक्षा के लिये (अद्य) = आज (सोमम् पिबन्तु) = ओषधि रस के समान ऐश्वर्य का भोग करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले आदित्य ब्रह्मचारी परमेश्वर के उपासक विद्वान् जन माता-पिता के समान लोगों को उपदेश देकर सन्मार्ग में प्रवृत्त करें। इनके उपदेशों से लोग धर्मात्मा, न्यायकारी, ईश्वर उपासक बनकर श्रेष्ठ ऐश्वर्य का उपभोग करें।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! यथा रजिष्ठा अदितिर्मित्रोऽर्यमा वरुणोऽस्माकं भुवनस्य गोपाः सन्ति नोऽवसे मादयन्तामद्य सोमं संपिबन्तु तथा ते आदित्यासोऽस्माकं भुवनस्य गोपास्सन्तु ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) पूर्णा विद्वांसः संवत्सरस्य मासा वा (अदितिः) अखण्डिता नीतिः (मादयन्ताम्) आनन्दयन्ताम् (मित्रः) सखा (अर्यमा) व्यवस्थापकः (वरुणः) श्रेष्ठः (रजिष्ठाः) अतिशयेन रजितारः (अस्माकम्) (सन्तु) (भुवनस्य) जलादेर्लोकसमूहस्य। भुवनमित्युदकनाम। (निघं०१.१२)। (गोपाः) रक्षकाः (पिबन्तु) (सोमम्) महौषधिरसम् (अवसे) रक्षणाद्याय (नः) अस्माकम् (अद्य) इदानीम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यूयमादित्यवत् विद्याप्रकाशेन वैद्यवदौषधसेवनेन नीरोगा भूत्वाऽस्माकमप्यारोग्यं कुर्वन्तु ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We pray, may the Adityas, brilliant sages and the seasonal phases of the sun, Aditi, mother nature and the ethics and policy of universal values, Mitra, the sun and the friendly ruler, Aryama, leader and pioneer, Varuna, chief of law and justice, all straight powers of rectitude, rejoice, be protectors of our social system and give us a life of joy. May they too join us today and share the taste of life’s ecstasy and excellence for further progress.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो, तुम्ही सूर्याप्रमाणे विद्या प्रकाशाने, वैद्याप्रमाणे औषधी सेवनाने निरोगी बनून आमचेही आरोग्य चांगले करा. ॥ २ ॥