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शं नो॑ अ॒ज एक॑पाद्दे॒वो अ॑स्तु॒ शं नोऽहि॑र्बु॒ध्न्यः१॒॑ शं स॑मु॒द्रः। शं नो॑ अ॒पां नपा॑त्पे॒रुर॑स्तु॒ शं नः॒ पृश्नि॑र्भवतु दे॒वगो॑पा ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śaṁ no aja ekapād devo astu śaṁ no hir budhnyaḥ śaṁ samudraḥ | śaṁ no apāṁ napāt perur astu śaṁ naḥ pṛśnir bhavatu devagopā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शम्। नः॒। अ॒जः। एक॑ऽपात्। दे॒वः। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। अहिः॑। बु॒ध्न्यः॑। शम्। स॒मु॒द्रः। शम्। नः॒। अ॒पाम्। नपा॑त्। पे॒रुः। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। पृश्निः॑। भ॒व॒तु॒। दे॒वऽगो॑पा ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:35» मन्त्र:13 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जनों को क्या शिक्षा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! तुम वैसी शिक्षा देओ जैसे (नः) हम लोगों को (अजः) जो कभी नहीं उत्पन्न होता वह जगदीश्वर (एकपात्) जिसके पैर में सब जगत् विद्यमान है (देवः) सब सुख देनेवाला विद्वान् (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (बुध्न्यः) अन्तरिक्ष में प्रसिद्ध होनेवाला (अहिः) मेघ (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप हो (समुद्रः) जिसमें अच्छे प्रकार जल उछलते हैं वह सागर (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप हो (अपाम्) जलों का (पेरुः) पार करनेवाला और (नपात्) पैर जिसके नहीं है वह नौका (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (देवगोपाः) और सब की रक्षा करनेवाला (पृश्निः) अन्तरिक्ष अवकाश हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवतु) हो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशको ! तुम हम लोगों को जन्ममरणादि दोषरहित ईश्वर, मेघ, समुद्र और नौका की विद्या का ग्रहण कराइये, जिससे हम लोग सब के रक्षक हों ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सर्वसुखदाता परमेश्वर सुखी करे

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- एक- (पाद्) = सब जगत् को एक पाद में धारण करनेवाला, (अजः) = उत्पन्न न होनेवाला, (देव:) = सुखदाता प्रभु (नः शम् अस्तु) = हमें शान्ति दे। (अहिः बुध्न्यः नः शम्) = अन्तरिक्ष में उत्पन्न मेघ हमें शान्ति दे। (समुद्रः शम्) = सागर शान्ति दे। (अपां) = जलों में (नपात्) = चरण-रहित नौका (पेरुः) = पार उतारनेवाला होकर (नः शं) = हमें शान्ति दे। (देव-गोपाः) = शुभ गुणों का रक्षक (पृश्नि:) = सुखवर्षक ज्ञानी (नः) हमें शान्ति दे।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुखों का वर्षक ज्ञानी विद्वान् राष्ट्र की प्रजा के लिए उपदेश करे कि सब जगत् को उत्पन्न करनेवाला सर्वसुखदाता परमेश्वर जो कभी उत्पन्न नहीं होता, जो अन्तरिक्ष में मेघों को उत्पन्न करता है, समुद्र का निर्माता है वह शुभ गुणोंवाले मनुष्यों की किस प्रकार से रक्षा करके सुख पहुँचाता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः का शिक्षा कार्येत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यूयं तथा शिक्षध्वं यथा न अज एकपाद्देवश्शमस्तु बुध्न्योऽहिर्नश्शमस्तु समुद्रो नश्शमस्त्वपां पेरुर्नपान्नः शमस्तु देवगोपाः पृश्निर्नः शं भवतु ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शम्) (नः) (अजः) यः कदाचिन्न जायते जगदीश्वरः (एकपात्) सर्वे जगदेकस्मिन् पादे यस्य सः (देवः) सर्वसुखप्रदाता (अस्तु) (शम्) (नः) (अहिः) मेघः (बुध्न्यः) बुध्नेऽन्तरिक्षे भवः (शम्) (समुद्रः) समुद्रवन्त्यापो यस्मिन् स सागरः (शम्) (नः) (अपाम्) (नपात्) न विद्यन्ते पादा यस्यां सा नौ (पेरुः) पारयिता (अस्तु) (शम्) (नः) (पृश्निः) अन्तरिक्षमवकाशः (भवतु) (देवगोपाः) सर्वेषां रक्षकः ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकाः ! यूयमस्माञ्जन्ममरणादिदोषरहितेश्वरमेघसमुद्रनौविद्या ग्राहयन्तु यतो वयं सर्वेषां रक्षका भवेम ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May the generous and self-refulgent lord unborn and eternal, sole sustainer of the universe, be gracious and give us peace. May the cloud floating in the sky be at peace and give us peace. May the ocean be at peace. May the boats and ships to cross the seas be at peace for us, and may the space and colourful sky sustaining divine generosities be at peace and give us peace and happiness.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक व उपदेशकांनो ! तुम्ही आम्हाला जन्ममरण इत्यादी दोषांनी रहित ईश्वर, मेघ, समुद्र व नौका इत्यादी विद्या ग्रहण करवा. ज्यामुळे आम्ही सर्वांचे रक्षक बनावे. ॥ १३ ॥