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तन्नो॒ रायः॒ पर्व॑ता॒स्तन्न॒ आप॒स्तद्रा॑ति॒षाच॒ ओष॑धीरु॒त द्यौः। वन॒स्पति॑भिः पृथि॒वी स॒जोषा॑ उ॒भे रोद॑सी॒ परि॑ पासतो नः ॥२३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tan no rāyaḥ parvatās tan na āpas tad rātiṣāca oṣadhīr uta dyauḥ | vanaspatibhiḥ pṛthivī sajoṣā ubhe rodasī pari pāsato naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। नः॒। रायः॑। पर्व॑ताः। तत्। नः॒। आपः॑। तत्। रा॒ति॒ऽसाचः॑। ओष॑धीः। उ॒त। द्यौः। वन॒स्पति॑ऽभिः। पृ॒थि॒वी। स॒ऽजोषाः॑। उ॒भे इति॑। रोद॑सी॒ इति॑। परि॑। पा॒स॒तः॒। नः॒ ॥२३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:23 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:23


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन अन्यों को क्या-क्या ज्ञान देवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे (पर्वताः) मेघ वा शैल (नः) हमारे लिये (तत्) उन (रायः) धनों को (रातिषाचः) जो दान का सम्बन्ध करते हैं वा (आपः) जलों को वा हमारे (तत्) उन (ओषधीः) यवादि ओषधियों को वा (तत्) उन अन्य पदार्थों को (उत) निश्चय करके (सजोषाः) समान सेवनेवाला जन वा (द्यौः) सूर्य (वनस्पतिभिः) वटादिकों के साथ (पृथिवी) पृथिवी वा (उभे) दोनों (रोदसी) प्रकाश और पृथिवी भी (नः) हम लोगों की (परि, पासतः) रक्षा करें, वैसे हम लोगों की आप लोग रक्षा करें ॥२३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । पढ़ने और सुननेवाले जन पढ़ाने और उपदेश करानेवालों के प्रति ऐसी प्रार्थना करें, हम लोगों को आप ऐसा बोध करावें कि जिससे हम लोग सब सृष्टि के सकाश से सुख की उन्नति कर सकें ॥२३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शस्य श्यामला भूमि

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- (तत् रायः) = वे ऐश्वर्य और (पर्वताः) = पर्वत, मेघ और पालक साधनों से सम्पन्न जन (नः) = हमारी रक्षा करें। (तत् आपः) = वे जल, प्राण, (तत् रातिषाचः) = वे दान लेनेवाले, (ओषधीः उत द्यौः) = ओषधियाँ, सूर्य, (वनस्पतिभिः सजोषाः पृथिवी) = वनस्पतियों से युक्त पृथिवी, (उभे रोदसी) = आकाश और भूमि, ये (नः परि पासत: उ) = हमारी रक्षा करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह अपने राज्य में बहुत वृक्षारोपण तथा यज्ञप्रसार अभियान चलावें। इससे राज्य में पर्यावरण प्रदूषण रहित होगा तथा समय पर वर्षा होकर भूमि शस्यश्यामला होगी जिससे समस्त प्रजा की रक्षा एवं पालन होगा।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसोऽन्यान् प्रति किं किं बोधयेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यथा पर्वता नस्तद्राया रातिषाच आपो नस्तदोषधीस्तदुत सजोषा द्यौर्वनस्पतिभिः पृथिवी उभे रोदसी च नः परि पासतस्तथाऽस्मान् भवन्तो शिक्षयन्तु ॥२३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) तान् (नः) अस्मभ्यम् (रायः) धनानि (पर्वताः) मेघाः शैला वा (तत्) तान् (नः) अस्मभ्यम् (आपः) जलानि (तत्) तान् (रातिषाचः) या रातिं दानं सचन्ते ताः (ओषधीः) यवाद्याः (उत) अपि (द्यौः) सूर्यः (वनस्पतिभिः) वटादिभिस्सह (पृथिवी) भूमिः (सजोषाः) समानसेवी (उभे) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (परि) सर्वतः (पासतः) रक्षेताम् (नः) अस्मान् ॥२३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अध्येतारः श्रोतारश्च चाध्यापकानुपदेशकान् प्रत्येवं प्रार्थयेयुरस्मान् भवन्त एवं बोधयन्तु येन वयं सर्वस्याः सृष्टेः सकाशात् सुखोन्नतिं कर्तुं सततं शक्नुयामेति ॥२३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That wealth, honour and excellence of ours, the clouds and mountains, the waters, the liberal givers, the herbs, the solar region, the dear motherly earth with her trees and forests and both heaven and earth protect, preserve and promote for us all round.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. शिकणाऱ्या व ऐकणाऱ्या लोकांनी शिकविणाऱ्या व उपदेश करणाऱ्यांना अशी प्रार्थना करावी की, आम्हाला तुम्ही असा बोध करा की, ज्यामुळे आम्ही सर्व सृष्टीच्या साह्याने सुखाची वृद्धी करू शकू. ॥ २३ ॥