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प्र शु॒क्रैतु॑ दे॒वी म॑नी॒षा अ॒स्मत्सुत॑ष्टो॒ रथो॒ न वा॒जी ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra śukraitu devī manīṣā asmat sutaṣṭo ratho na vājī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। शु॒क्रा। ए॒तु॒। दे॒वी। म॒नी॒षा। अ॒स्मत्। सुऽत॑ष्टः। रथः॑। न। वा॒जी ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कन्याजन किनसे विद्या को पावें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुक्रा) शुद्ध अन्तःकरणयुक्त शीघ्रकारिणी (देवी) विदुषी कन्या (अस्मत्) हमारे से (सुतष्टः) उत्तम कारू अर्थात् कारीगर के बनाये हुए (वाजी) वेगवान् (रथः) रथ के (न) समान (मनीषाः) उत्तम बुद्धियों को (प्र, एतु) प्राप्त होवे ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । सब कन्या विदुषियों से ब्रह्मचर्य्य नियम से सब विद्या पढ़ें ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विदुषी स्त्री

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- (वाजी) = वेगवान् (रथः सु-तष्टः) = रथ उत्तम रीति से निर्मित होकर जैसे (मनीषा: एति) = मनोनुकूल गतियें करता है वैसे ही (सु-तष्ट:) = उत्तम रीति से अध्यापित, (वाजी) = ज्ञानी पुरुष और (शुक्रा) = शुद्ध अन्त:करणवाली, (देवी) = विदुषी स्त्री भी (अस्मत्) = हमसे (मनीषा:) = उत्तम बुद्धियों को (एतु) = प्राप्त करे।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- जैसे पुरुष आचार्यों के पास शिक्षा प्राप्त कर ज्ञानवान होता है उसी प्रकार स्त्रियाँ भी आचार्याओं से वेदविद्या को ग्रहण कर उत्तम विदुषी होवें। इससे राष्ट्र उन्नत बनता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कन्याः काभ्यो विद्याः प्राप्नुयुरित्याह ॥

अन्वय:

शुक्रा देवी कन्याऽस्मत्सुतष्टो वाजी रथो न मनीषाः प्रैतु ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (शुक्रा) शुद्धान्तःकरणा आशुकारिणी (एतु) प्राप्नोतु (देवी) विदुषी (मनीषाः) प्रज्ञाः (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (सुतष्टः) उत्तमेन शिल्पिना निर्मितः (रथः) (न) इव (वाजी) ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । सर्वाः कन्या विदुषीभ्यः स्त्रीभ्यो ब्रह्मचर्येण सर्वा विद्या अधीयीरन् ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May divine intelligence of pure and brilliant order come to us like the dawn riding a wonderfully crafted chariot drawn by flying horses.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अध्येता, अध्यापक, स्त्री-पुरुष, राजा, प्रजा, सेना, सेवक व विश्वदेव यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सर्व कन्यांनी विदुषींकडून ब्रह्मचर्यपूर्वक संपूर्ण विद्या शिकावी. ॥ १ ॥