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त्वं वर्मा॑सि स॒प्रथः॑ पुरोयो॒धश्च॑ वृत्रहन्। त्वया॒ प्रति॑ ब्रुवे यु॒जा ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ varmāsi saprathaḥ puroyodhaś ca vṛtrahan | tvayā prati bruve yujā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। वर्म॑। अ॒सि॒। स॒ऽप्रथः॑। पु॒रः॒ऽयो॒धः। च॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। त्वया॑। प्रति॑। ब्रु॒वे॒। यु॒जा ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:31» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:15» मन्त्र:6 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) दुष्टों के हननेवाला राजा ! जो (त्वम्) आप (योधः) युद्ध करनेवाले (सप्रथः) प्रख्याति प्रशंसा के सहित (वर्म, च) और कवच के समान (असि) हैं जिस (युजो) न्याय से युक्त होनेवाले (त्वया) आपके साथ मैं (प्रति, ब्रुवे) प्रत्यक्ष उपदेश करता हूँ सो आप (पुरः) आगे रक्षा करनेवाले हूजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो राजा सत्कीर्ति, सुशील, निरभिमान, विद्वान् हो तो उसके प्रति सब सत्य बोलें और वह सुनकर प्रसन्न हो ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

राजा प्रजा की कवचवत् रक्षा करे

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ - हे (वृत्रहन्) = दुष्टनाशक ! (त्वं) = तू (सप्रथः) = ख्याति से युक्त (वर्म असि) = कवच तुल्य रक्षक और (पुरः योधः च) = आगे बढ़कर युद्धकर्ता है। (त्वया युजा) = तुझ सहायक से मैं (प्रति ब्रुवे) = शत्रु का उत्तर दूँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- राजा अपनी प्रजा का कुशल नेतृत्व करते हुए कवच के समान उसकी रक्षा करे तथा प्रेरणा करे कि वह शत्रु से राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ हो ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे वृत्रहन् राजन् ! यस्त्वं योधः सप्रथो वर्मेव चासि येन युजा त्वयाऽहं प्रति ब्रुवे स त्वं पुरो रक्षको भव ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (वर्म) कवचमिव (असि) (सप्रथः) सप्रख्यातिः (पुरः) पुरस्तात् (योधः) योद्धा (च) (वृत्रहन्) दुष्टानां हन्तः (त्वया) (प्रति) (ब्रुवे) उपदिशामि (युजा) यो न्यायेन युनक्ति तेन ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि राजा सत्कीर्तिः सुशीलो निरभिमानो विद्वान् स्यात्तर्हि तं प्रति सर्वे सत्यं ब्रूयुः स च श्रुत्वा प्रसन्नः स्यात् ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - You are the celebrated armour of defence and all round protection, front rank warrior, destroyer of evil, darkness and want: committed to you in covenant, I say so and bind myself.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर राजा उत्तम कीर्तिप्राप्त, सुशील, निरभिमानी, विद्वान असेल तर त्याच्याबरोबर सर्वांनी सत्य बोलावे. जे ऐकून तो प्रसन्न व्हावा. ॥ ६ ॥