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या वा॑ ते॒ सन्ति॑ दा॒शुषे॒ अधृ॑ष्टा॒ गिरो॑ वा॒ याभि॑र्नृ॒वती॑रुरु॒ष्याः। ताभि॑र्नः सूनो सहसो॒ नि पा॑हि॒ स्मत्सू॒रीञ्ज॑रि॒तॄञ्जा॑तवेदः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā vā te santi dāśuṣe adhṛṣṭā giro vā yābhir nṛvatīr uruṣyāḥ | tābhir naḥ sūno sahaso ni pāhi smat sūrīñ jaritṝñ jātavedaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याः। वा॒। ते॒। सन्ति॑। दा॒शुषे॑। अधृ॑ष्टाः। गिरः॑। वा॒। याभिः॑। नृ॒ऽवतीः॑। उ॒रु॒ष्याः। ताभिः॑। नः॒। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। नि। पा॒हि॒। स्मत्। सू॒रीन्। ज॒रि॒तॄन्। जा॒त॒ऽवे॒दः॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:3» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किन-किन से किनकी रक्षा करनी चाहिये ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) बलवान् के (सूनो) पुत्र ! (जातवेदः) प्रकट बुद्धिमानी को प्राप्त हुए (याः) जो (ते) आपकी (अधृष्टाः) न धमकाने योग्य (गिरः) सुशिक्षित वाणी (सन्ति) हैं (वा) अथवा (दाशुषे) दाता पुरुष के लिये हितकारिणी हैं (वा) अथवा (याभिः) जिन वाणियों से आप (नृवतीः) उत्तम मनुष्योंवाली प्रजाओं की (उरुष्याः) रक्षा कीजिये (ताभिः) उनसे (नः) हम (जरितॄन्) समस्त विद्याओं की स्तुति प्रशंसा करनेवाले (सूरीन्) विद्वानों की (स्मत्) ही (नि, पाहि) निरन्तर रक्षा कीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग जब तक विद्या, शिक्षा, विनयों को ग्रहण कर अन्यों को नहीं ग्रहण कराते, तब तक प्रजाओं का पालन करने को नहीं समर्थ होते हैं, जब तक धर्मात्मा विद्वानों के राज्य में अधिकार न हों, तब तक यथावत् प्रजा का पालन होना दुर्घट है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अधर्षणीय तेजस्विता व ज्ञान-वाणियाँ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सहसः सूनो) = बल के पुत्र शक्ति के पुञ्ज प्रभो! (या:) = जो (दाशुषे) = आपके प्रति अपना अर्पण करनेवाले के (ते) = आपकी (अधृष्टाः) = शत्रुओं से अधर्षणीय तेज की ज्वालायें हैं, (वा) = या आपकी जो (गिरः) = ज्ञान की वाणियाँ हैं। (याभिः) = जिनके द्वारा आप (नृवती:) = प्रशस्त पुत्रोंवाली प्रजाओं को (उरुष्यः) = रक्षित करते हैं। प्रजाओं का रक्षण 'तेज व ज्ञान' के द्वारा ही तो होता है। हे शक्ति के स्वामिन् ! (ताभिः) = उन तेजो-ज्वालाओं व ज्ञानवाणियों से (नः) = हमारा (निपाहि) = रक्षण करिये। [२] हे (जातवेदः) = सर्वज्ञ प्रभो! आप (स्मत्) = प्रशस्त (सूरीन्) = ज्ञानी (जरितॄन्) = स्तोताओं को भी नितरां रक्षित करिये। तेजस्विता के कारण ये रोगों से आक्रान्त न हों तथा ज्ञान इन्हें वासनाओं के आक्रमण से बचानेवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हे प्रभो! आपके प्रति अपना अर्पण करनेवाले पुरुष के लिये आपकी अधर्षणीय तेजस्विता व ज्ञान की वाणियाँ हैं। इनके द्वारा आप हमारा भी रक्षण करिये। ज्ञानी स्तोताओं को आपकी यह तेजस्विता व ज्ञानवाणी रक्षित करनेवाली हो ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कैः काभिः काः पालनीया इत्याह ॥

अन्वय:

हे सहसस्सूनो ! जातवेदो यास्तेऽधृष्टा गिरः सन्ति वा दाशुषे हितकर्यः सन्ति याभिर्वा त्वं नृवतीरुरुष्यास्ताभिर्नोऽस्मान् सूरीञ्जरितॄन् स्मन्निपाहि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) (वा) (ते) तव (सन्ति) (दाशुषे) दात्रे (अधृष्टाः) अधर्षणीयाः (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (वा) (याभिः) (नृवतीः) नरो विद्यन्ते यासु प्रजासु ताः (उरुष्याः) (रक्षेः) (ताभिः) (नः) अस्मान् (सूनो) अपत्य (सहसः) बलिष्ठस्य (नि) नितराम् (पाहि) रक्ष (स्मत्) एव (सूरीन्) विदुषः (जरितॄन्) सकलविद्यास्तावकान् (जातवेदः) ज्ञातप्रज्ञः ॥८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या यावद्विद्याशिक्षाविनयान् गृहीत्वा[ऽन्यान्] न ग्राहयन्ति तावत् प्रजाः पालयितुं न शक्नुवन्ति यावद्धार्मिकाणां विदुषां राज्येऽधिकारा न स्युस्तावद्यथावत्प्रजापालनं दुर्घटम् ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Or what we know are your divine voices, loud, bold and unchallengeable, gifted to the generous yajnic giver, by which you protect your people who comprise the best men and women, by them, O child of omnipotence, Jataveda, present with every thing in existence, protect and promote us and the learned brave celebrants of divinity.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसे जोपर्यंत विद्या शिक्षा, विनय यांचा स्वीकार करीत नाहीत तोपर्यंत प्रजेचे पालन करण्यास समर्थ होऊ शकत नाहीत. जोपर्यंत धार्मिक विद्वानांना राज्यात अधिकार नसतो तोपर्यंत प्रजेचे यथायोग्य पालन होणे कठीण आहे. ॥ ८ ॥