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ये च॒ पूर्व॒ ऋष॑यो॒ ये च॒ नूत्ना॒ इन्द्र॒ ब्रह्मा॑णि ज॒नय॑न्त॒ विप्राः॑। अ॒स्मे ते॑ सन्तु स॒ख्या शि॒वानि॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye ca pūrva ṛṣayo ye ca nūtnā indra brahmāṇi janayanta viprāḥ | asme te santu sakhyā śivāni yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। च॒। पूर्वे॑। ऋष॑यः। ये। च॒। नूत्नाः॑। इन्द्र॑। ब्रह्मा॑णि। ज॒नय॑न्त। विप्राः॑। अ॒स्मे इति॑। ते॒। स॒न्तु॒। स॒ख्या। शि॒वानि॑। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:22» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:6» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजादिकों को किनके साथ मैत्री विधान करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! (ये) जो (पूर्वे) विद्या पढ़े हुए (ऋषयः) वेदार्थवेत्ता जन (च) और धार्मिक अन्य जन (ये) जो (नूत्नाः) नवीन पढ़नेवाले जन (च) और बुद्धिमान् अन्य जन (विप्राः) उत्तम बुद्धिवाले जन (ते) तुम्हारे और (अस्मे) हम लोगों के लिये (ब्रह्माणि) धन वा अन्नों को (जनयन्त) उत्पन्न करते हैं उनके साथ हमारे और आपके (शिवानि) मङ्गल देनेवाले (सख्या) मित्र के कर्म (सन्तु) हों जैसे (यूयम्) तुम हमारे मित्र हुए (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम लोगों की (सदा) सदा (पात) रक्षा करो, वैसे हम लोग भी तुम को सुखों से सदा पालें ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे राजा ! जो वेदार्थवेत्ता और अर्थ पदार्थों को जाननेवाले योगी जन विद्याध्ययन में निरत बुद्धिमान् हमारे कल्याण की इच्छा करनेवाले हों, उनके साथ ऐसी मित्रता कर धनधान्यों को बढ़ा इनसे इनकी सदा रक्षा कर और रक्षा किये हुए वह जन आप की सदा रक्षा करेंगे ॥९॥ इस सूक्त में इन्द्र, राजा, शूर, सेनापति, पढ़ाने, पढ़ने, परीक्षा करने और उपदेश देनेवालों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बाईसवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पुराने और नए ऋषि वेदार्थ का प्रकाश करें

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ - हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् आचार्य ! (ये च ऋषयः) = जो सत्य-ज्ञानों के द्रष्टा, (पूर्वे) = काल के गुरुजन और (ये च नूत्ना:) = जो नये शिष्य, नवशिक्षित (विप्राः) = विद्वान् पुरुष हैं (ब्रह्माणि जनयन्त) = वेद-मन्त्रों के अर्थों का प्रकाश करें। हे विद्वन्! तेरी (सख्यानि) = मित्रता कार्य (अस्मे) = हमारे लिये (शिवानि) = कल्याणकारक हों। (यूयम्) = आप लोग, हे विद्वन् ऋषिजनो (नः) = हमारी (सदा) = सदा (स्वस्तिभि) = उत्तम साधनों से (पात) = रक्षा करो।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राचीन विद्वान् तेरी वाणी वेद के अर्थ का प्रकाश करते रहे हैं। नए विद्वान् भी वेदार्थ का प्रकाश करें कि जिससे जगत् का कल्याण होवे । अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ इन्द्र नाम से परमात्मा की स्तुति करता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजादिभिः कैस्सह मैत्री विधेयेत्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! ये पूर्व ऋषयो धार्मिकाश्च ये नूत्ना धीमन्तश्च विप्रास्ते अस्मे च ब्रह्माणि जनयन्त तैस्सहाऽस्माकं तव च शिवानि सख्या सन्तु यथा यूयमस्मत्सखाय सन्तः स्वस्तिभिर्नः सदा पात तथा वयमपि युष्मान् स्वस्तिभिः सदा रक्षेम ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) (च) (पूर्वे) अधीतवन्तः (ऋषयः) वेदार्थविदः (ये) (च) (नूत्नाः) अधीयते (इन्द्र) राजन् (ब्रह्माणि) धनान्यन्नानि वा (जनयन्त) जनयन्ति (विप्राः) मेधाविनः (अस्मे) अस्मभ्यमस्माकं वा (ते) तव (सन्तु) (सख्या) सख्युः कर्माणि (शिवानि) मङ्गलप्रदानि (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) सदा (नः) ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ये वेदार्थविदर्थविदो योगिन आप्ता उपदेशका अध्यापकाश्च ये धर्म्येण विद्याध्ययने रताः प्राज्ञाश्चास्मत्कल्याणेच्छुका भवेयुस्तैस्सहैव मैत्रीं कृत्वा धनधान्यानि वर्धयित्वैतैरेतान् सततं रक्ष रक्षिताश्च ते भवन्तं सदा रक्षयिष्यन्तीति ॥९॥ अत्रेन्द्रराजशूरसेनेशाध्यापकाऽध्येतृपरीक्षकोपदेशककृत्यगुणवर्णनादेतदर्थस्य सूक्तस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वाविंशतितमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - All the songs of adoration and acts of homage and worship which the veteran seers of ancient wisdom and new scholars of modern vision and wisdom create and offer to you, mighty ruler of the world, may they all be friendly and blissful for us all. O seers and scholars, O lord Indra, pray always protect and promote us with all modes of protection, promotion and all round well being.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जे वेदार्थ जाणणारे योगी विद्वान उपदेशक, अध्यापक, ब्रह्मचारी विद्याध्ययनात रत, बुद्धिमान, आमचे कल्याण करण्याची इच्छा धरणारे असतील तर त्यांच्याबरोबर मैत्री करून धनधान्य वाढवून त्यांचे सदैव रक्षण कर. रक्षित लोकही तुझे सदैव रक्षण करतील. ॥ ९ ॥