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उ॒त द्वार॑ उश॒तीर्वि श्र॑यन्तामु॒त दे॒वाँ उ॑श॒त आ व॑हे॒ह ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta dvāra uśatīr vi śrayantām uta devām̐ uśata ā vaheha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। द्वारः॑। उ॒श॒तीः। वि। श्र॒य॒न्ता॒म्। उ॒त। दे॒वान्। उ॒श॒तः। आ। व॒ह॒। इ॒ह ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:17» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक और विद्यार्थी परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यार्थी ! जैसे (द्वारः) द्वार (उशतीः) कामनावाली हृदय को प्यारी पत्नियों को विद्वान् (उत) और (उशतः) कामना करते हुए (देवान्) उत्तम गुण-कर्म-स्वभावयुक्त विद्वान् पतियों को स्त्रियाँ (वि, श्रयन्ताम्) विशेष कर सेवन करें वा जैसे अग्नि (इह) इस जगत् में सब को प्राप्त होता (उत) और दिव्य गुणों को प्राप्त कराता है, वैसे ही आप (आ, वह) प्राप्त करिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो विद्यार्थी विद्या की कामना से आप्त अध्यापकों का सेवन करते, जिन उत्तम विद्यार्थियों को अध्यापक चाहते, वे परस्पर कामना करते हुए विद्या की उन्नति कर सकते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिव्यगुणों के प्रवेशक इन्द्रियद्वार

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (उत) = और (उशती:) = दिव्यगुणों की कामना करते हुए (द्वारः) = ये शरीररूप यज्ञवेदि के इन्द्रियद्वार (विश्रयन्ताम्) = विशेषरूप से इस (यज्ञ) = मन्दिर का आश्रय करें। [२] (उत) = और (उशतः) = हमारा हित चाहनेवाले (देवान्) = देववृत्ति के पुरुषों को (इह) = हमारे इस जीवन यज्ञ में (आवह) = प्राप्त कराइये।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे इन्द्रियद्वार दिव्यगुणों के प्रवेश का साधन बनें। हमें जीवनयज्ञ में देववृत्ति के पुरुषों का सम्पर्क प्राप्त हो ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकविद्यार्थिनः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्यार्थिन् ! यथा द्वार उशतीर्हृद्याः पत्नीर्विद्वांस उत वोशतो देवान् स्त्रियो वि श्रयन्तां यथाऽग्निरिह सर्वं वहत्युत वा दिव्यान् गुणान् प्रापयति तथैव त्वमावह ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (द्वारः) द्वाराणि (उशतीः) कामयमानाः (वि) (श्रयन्ताम्) सेवन्ताम् (उत) (देवान्) दिव्यगुणकर्मस्वभावान् (उशतः) कामयमानान् पतीन् (आ) (वह) (इह) अस्मिन् ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्यार्थिनो विद्याकामनाय आप्तानध्यापकान् सेवन्ते यानुत्तमान् विद्यार्थिनोऽध्यापका इच्छन्ति ते परस्परं कामयमाना विद्यामुन्नेतुं शक्नुवन्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And let the doors of love and ecstasy be thrown open, and let the divinities inspired with the light and love of holy ambition enter. O leading light, bring them in hither.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्यार्थी विद्येची कामना करून विद्वान अध्यापकांचा स्वीकार करतात व जे उत्तम विद्यार्थी अध्यापकांना आवडतात ते परस्परांची कामना करीत विद्येची उन्नती करतात. ॥ २ ॥