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क्षप॑ उ॒स्रश्च॑ दीदिहि स्व॒ग्नय॒स्त्वया॑ व॒यम्। सु॒वीर॒स्त्वम॑स्म॒युः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṣapa usraś ca dīdihi svagnayas tvayā vayam | suvīras tvam asmayuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्षपः॑। उ॒स्रः। च॒। दी॒दि॒हि॒। सु॒ऽअ॒ग्नयः॑। त्वया॑। व॒यम्। सु॒ऽवीरः॑। त्वम्। अ॒स्म॒ऽयुः ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:15» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (अस्मयुः) हमको चाहनेवाले (सुवीरः) सुन्दर वीर पुरुषों से युक्त (त्वम्) आप (क्षपः) रात्रियों (च) और (उस्रः) किरणयुक्त दिनों में (अस्मान्) हम को (दीदिहि) प्रकाशित कीजिये (त्वया) आप के साथ (स्वग्नयः) सुन्दर अग्नियोंवाले (वयम्) हम लोग प्रतिदिन प्रकाशित हों ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजा और राजपुरुषो ! जैसे प्रतिदिन सूर्य प्रकाशित होता है, वैसे तुम लोग सदा प्रकाशित होओ ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सदा प्रभु के प्रकाश में

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो ! (क्षपः उस्त्रः च) = रात्रियों में व दिनों में सदा ही आप (दीदिहि) = हमारे हृदयों में दीप्त होइये। (वयम्) = हम (त्वया) = आपके द्वारा (स्वग्नयः) = उत्तम यज्ञ की अग्नियोंवाले हों, अर्थात् आपकी प्रेरणा से सदा यज्ञ आदि उत्तम कार्यों में प्रवृत्त रहें। [२] (त्वम्) = आप (सुवीरः) = उत्तम वीर सन्तानों को प्राप्त करानेवाले हैं तथा (अस्मयुः) = सदा हमारे हित की कामनावाले हैं। सदा हृदयस्थरूपेण उत्तम प्रेरणा को देते हुए आप हमारा हित चाहते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे हृदयों में सदा प्रभु का प्रकाश हो और हम सदा ही यज्ञ आदि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहें। प्रभु हमारे हित की कामनावाले हैं और हमें उत्तम वीर सन्तानों को प्राप्त कराते हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाजनाः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन्नस्मयुः सुवीरस्त्वं क्षप उस्रश्चास्मान् दीदिहि त्वया सह स्वग्नयो वयं त्वामहर्निशं प्रकाशेम ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्षपः) रात्रीः (उस्रः) किरणयुक्तानि दिनानि। उस्रा इति रश्मिनाम। (निघं०१.५) (च) (दीदिहि) प्रकाशय (स्वग्नयः) शोभना अग्नयो येषान्ते (त्वया) रक्षकेण राज्ञा (वयम्) (सुवीरः) शोभना वीरा यस्य सः (त्वम्) (अस्मयुः) अस्मान् कामयमानः ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजराजजना ! यथाऽहर्निशं सूर्यः प्रकाशते तथा यूयं प्रकाशिता भवत ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Shine forth, beatify the night and brighten up the day with the light of sun rays, and by virtue of your brilliance let us shine too like holy fires. Chief of the youthful brave you are, our own, always for us.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा व राजजनांनो ! सूर्य जसा अहर्निश प्रकाश देतो तसे तुम्हीही प्रकाशित व्हा. ॥ ८ ॥