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स नो॒ राधां॒स्या भ॒रेशा॑नः सहसो यहो। भग॑श्च दातु॒ वार्य॑म् ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no rādhāṁsy ā bhareśānaḥ sahaso yaho | bhagaś ca dātu vāryam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। राधां॑सि। आ। भ॒र॒। ईशा॑नः। स॒ह॒सः॒। य॒हो॒ इति॑। भगः॑। च॒। दा॒तु॒। वार्य॑म् ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:15» मन्त्र:11 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) अति बलवान् के (यहो) पुत्र राजन् ! अग्नि के तुल्य तेजस्वी (ईशानः) समर्थ (भगः) ऐश्वर्यवान् जो आप (नः) हमारे लिये (राधांसि) सुख बढ़ानेवाले धनों को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण वा पोषण करें तथा (वार्यम्) स्वीकार करने योग्य ऐश्वर्य को (च) भी (सः) सो आप (दातु) दीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्निविद्या से धनधान्य सम्बन्धी ऐश्वर्य को मनुष्य प्राप्त होते हैं, वैसे ही उत्तम राज्य प्रबन्ध से मनुष्य धनाढ्य और सुखी होते हैं ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'वरणीय कार्यसाधक' धन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सहसः यहो) = हे बल के पुत्र बल के पुञ्ज प्रभो ! (सः) = वे आप (नः) = हमारे लिये (राधांसि) = कार्यसाधक धनों को (आभर) = समन्तात् प्राप्त कराइये। (ईशानः) = आप ही तो सब धनों के स्वामी हैं। [२] (च) = और (भगः) = सब ऐश्वर्यों के स्वामी प्रभु (वार्यम्) = वरणीय धनों को (दातु) = देनेवाले हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमें शक्ति दें जिससे हम चाहने योग्य [वरणीय] कार्यसाधक धनों को प्राप्त कर सकें।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सहसो यहो राजन्नग्निरिवेशानो भगो यस्त्वं नो राधांस्याभर। वार्य्यं भगश्च स भवान् दातु ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (नः) अस्मभ्यम् (राधांसि) समृद्धिकराणि धनानि (आ) (भर) (ईशानः) ईषणशीलः समर्थः (सहसः) बलिष्ठस्य (यहो) अपत्य (भगः) ऐश्वर्यवानैश्वर्यं वा (च) (दातु) ददातु (वार्यम्) वरणीयम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्निविद्यया धनधान्यैश्वर्यं मनुष्याः प्राप्नुवन्ति तथैवोत्तमराजप्रबन्धेन जना धनाढ्याः सुखिनश्च जायन्ते ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And that ruling power, a very image of patience, fortitude and omnipotence, may, we pray, bring us the best of means, materials and modes of success, and may the lord of power, honour and excellence bring us all we cherish and value in life.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अग्नीद्वारे धनधान्य इत्यादी ऐश्वर्य माणसांना प्राप्त होते तसेच उत्तम राज्यव्यवस्थेने माणसे धनाढ्य व सुखी होतात. ॥ ११ ॥