वांछित मन्त्र चुनें

यो मा॒ पाके॑न॒ मन॑सा॒ चर॑न्तमभि॒चष्टे॒ अनृ॑तेभि॒र्वचो॑भिः । आप॑ इव का॒शिना॒ संगृ॑भीता॒ अस॑न्न॒स्त्वास॑त इन्द्र व॒क्ता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo mā pākena manasā carantam abhicaṣṭe anṛtebhir vacobhiḥ | āpa iva kāśinā saṁgṛbhītā asann astv āsata indra vaktā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । मा॒ । पाके॑न । मन॑सा । चर॑न्तम् । अ॒भि॒ऽचष्टे॑ । अनृ॑तेभिः । वचः॑ऽभिः । आपः॑ऽइव । का॒शिना॑ । सम्ऽगृ॑भीताः । अस॑न् । अ॒स्तु॒ । अस॑तः । इ॒न्द्र॒ । व॒क्ता ॥ ७.१०४.८

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:104» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:8


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) हे विद्युद्शक्तिप्रधान परमात्मन् ! (पाकेन) शुद्ध (मनसा) मन से (चरन्तम्) आचरण करते हुए (मा) मुझको (यः) जो (अनृतेभि, वचोभिः) झूठ बोल कर (अभिचष्टे) दूषित करता है, वह (काशिना, संगृभीताः) मुठ्ठी भरे हुए (आपः, इव) जल के समान (असन्, अस्तु) असत् हो जाय, क्योंकि वह (असतः, वक्ता) झूठ का बोलनेवाला है ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में शुद्ध मन से आचरण करने की अत्यन्त प्रशंसा की है कि जो पुरुष कायिक, वाचिक और मानस तीनों प्रकार से शुद्धभाव और सत्यवादी रहते हैं, उनके समान कोई असत्यवादी ठहर नहीं सकता। तात्पर्य यह है कि मनुष्य को अपनी सच्चाई पर सदा दृढ़ रहना चाहिये ॥८॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

असत्यभाषी विद्वान् को दण्ड

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ - हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् ! (यः) = जो (पाकेन मनसा) = परिपक्व दढ़, ज्ञान वा चित्त से अथवा (पाकेन=वाकेन) = सत्य वचन और (मनसा)= उत्तम ज्ञान-सहित (चरन्तम्) = आचरण करनेवाले (मा) = मुझ पर (अनृतेभिः वचोभि) = असत्य वचनों द्वारा (अभि-चष्टे) = आक्षेप करता है वह (असन्) = असत्य का (वक्ता) = कहनेवाला (काशिना संगृभीताः अपः इव) = मुट्ठी में लिये जलों के समान (असन् अस्तु) = नहीं-सा होकर नष्ट हो।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- यदि कोई विद्वान् किसी निर्दोष व्यक्ति पर झूठे आरोप लगावे तो ऐसे असत्यभाषी विद्वान् को भी राजा दण्ड दे।
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) हे विद्युच्छक्तिधारिन् परमात्मन् ! (पाकेन) शुद्धेन (मनसा) चेतसा (चरन्तम्) आचरन्तं (मा) मां (यः) यो दुर्जनः (अनृतेभिः, वचोभिः) अयथार्थवाग्भिः (अभिचष्टे) दूषयति, सः (काशिना, सङ्गृभीताः) मुष्टिना गृहीतानि (आपः, इव) जलानीव (असन्, अस्तु) अविद्यमानो भवतु, यतो हि सः (असतः, वक्ता) असत्यवाद्यस्तीति ॥८॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And while I live and act and behave with a mature mind of purity and truth, if someone malign me with false words, let him be caught up like water in the hand grip and evaporate in the heat and, O lord Indra, ruler and law giver of power, let him be reduced to nothing because he speaks nothing but falsehood.