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मा नो॒ रक्षो॑ अ॒भि न॑ड्यातु॒माव॑ता॒मपो॑च्छतु मिथु॒ना या कि॑मी॒दिना॑ । पृ॒थि॒वी न॒: पार्थि॑वात्पा॒त्वंह॑सो॒ऽन्तरि॑क्षं दि॒व्यात्पा॑त्व॒स्मान् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no rakṣo abhi naḍ yātumāvatām apocchatu mithunā yā kimīdinā | pṛthivī naḥ pārthivāt pātv aṁhaso ntarikṣaṁ divyāt pātv asmān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा । नः॒ । रक्षः॑ । अ॒भि । न॒ट् । या॒तु॒ऽमाव॑ताम् । अप॑ । उ॒च्छ॒तु॒ । मि॒थु॒ना । या । कि॒मी॒दिना॑ । पृ॒थि॒वी । नः॒ । पार्थि॑वात् । पा॒तु॒ । अंह॑सः । अ॒न्तरि॑क्षम् । दि॒व्यात् । पा॒तु॒ । अ॒स्मान् ॥ ७.१०४.२३

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:104» मन्त्र:23 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:23


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (या, किमिदिना) जो “किमिदम् किमिदम् इति वादिनः” ईश्वर के ज्ञान में संशय करनेवाले अर्थात् ये क्या है, ये क्या है, ऐसा संशय उत्पन्न करनेवाले और (यातुमावतां, मिथुना) राक्षसों के यूथ=जत्थे हैं, (अपोच्छतु) वे हमसे दूर हो जायँ, (मा, नः, रक्षः, अभिनट्) ऐसे राक्षस हम पर आक्रमण न करें और (पृथिवी) भूमि (पार्थिवात्, अंहसः) पार्थिव पदार्थों की अपवित्रता से (नः) हमारी (पातु) रक्षा करे, (दिव्यात्) द्युभव पदार्थों से (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (अस्मान्, पातु) हमारी रक्षा करे ॥२३॥
भावार्थभाषाः - तात्पर्य यह है कि आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक तीनों प्रकार के तापों से हम सर्वथा वर्जित रहें अर्थात् पार्थिक शरीर में कोई आधिभौतिक ताप न हो और अन्तरिक्ष से हमें कोई आधिभौतिक ताप न व्यापे और मानस तापों के मूलभूत अन्यायकारी राक्षसों का विध्वंस होने से हमें कोई मानस ताप न व्याप्त हो और जो पृथिवी तथा अन्तरिक्ष से रक्षा का कथन है, वह तापनिवृत्ति के अभिप्राय से औपचारिक है, मुख्य नहीं ॥२३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आकाश व भूमि मार्गों से राष्ट्र की सुरक्षा

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ - (रक्षः) = दुष्ट पुरुष (नः) = हम तक (मा अभिनड्) = न पहुँचे। (यातुमा वताम्) = पीड़ा देनेवाले जनों के (मिथुना) = जोड़े, स्त्री-पुरुष (या किमीदिना) = जो क्षुद्र कोटि का स्वार्थमय स्नेह करते हैं वे (अप उच्छतु) = दूर हों। (पृथिवी) = पृथिवीवत् सर्वाश्रय, विस्तृत शक्ति (नः पार्थिवात् अहंसः पातु) = हमें पृथिवी से होनेवाले कष्ट से बचावे और (अन्तरिक्षं )= अन्तरिक्ष (अस्मान्) = हमें (दिव्यात् अंहसः पातु) = आकाश की ओर से आनेवाले कष्ट से बचावे ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - राजा कठोर राजनियम तथा सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ करे जिससे दुष्ट लोग प्रजा तक न जा सकें। अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए भूमि तथा आकाश दोनों ओर से होनेवाले आक्रमण को रोकने में समर्थ हो ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (या, किमीदिना) ये प्रतिपरमात्मवाक्ये संशयं कुर्वाणाः (यातुमावताम्, मिथुना) राक्षसानां द्वन्द्वानि च ते (अपोच्छतु) अपसरन्त्वस्मत् (मा, नः, रक्षः, अभिनट्) ईदृशो राक्षसा न मामभिक्रामन्तु (पृथिवी) भूमिः (पार्थिवात्, अंहसः) पार्थिवपापात् (नः, पातु) अस्मान् पुनातु (दिव्यात्) द्युभवपदार्थात् (अन्तरिक्षम्) द्यौः (अस्मान्, पातु) नो रक्षतु ॥२३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Let no wicked demonic forces harm and destroy us. Let the darkness of tormentors harming us either by joint force or by doubt and scepticism be off. May the earth protect us against earthly sin and crime. Let the sky protect us against dangers from above.